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सूक्ष्म, गहन, विश्लेषण किया है जो तात्विक ज्ञानमें अभिरुचिशील श्रमणों और विद्विद्जनों के लिये विशेषत: पठनीय है, क्योंकि जीवनमें तत्वज्ञान का बहुत बड़ा महत्त्व है। यद्यपि सब लोग, तत्वज्ञानमें प्रगति नहीं कर सकते, क्योंकि - उसमें प्रज्ञा, अभ्यास और श्रमकी अत्याधिक आवश्यकता है, किंतु जिनमें प्रतिभा, रुचि और कार्यशक्ति हो, उन्हें तो अवश्यही उच्चस्तरीय तत्वज्ञान प्राप्त करना चाहिये। ऐसे पुरुषोंके लिये टीकाकारोंद्वारा की गई व्याख्यायें बहुतही लाभप्रद है।
व्याख्या साहित्य के अंतर्गत चूर्णियोंकी यह विशेषता रही है कि - सैद्धांतिक तत्वोंको समझाने के लिये उनमें कथाओं का विशेष रुप से उपयोग किया गयाहै। कथानकों, दृष्टांतों
और उदाहरणोंद्वारा गहन एवं कठीन तत्वोंको आसानी से समझा जा सकता है । चूर्णिकारों का यह प्रयत्न वास्तवमें अत्यंत उपयोगी है । शताब्दियों से तत्वजिज्ञासु इनका अध्ययन करते हुए लाभान्वित हो रहे हैं।
दार्शनिकता के साथ - साथ लौकिक विषयोंपर भी टीकाकारोने बहुत ही विशद विश्लेषण किया है - जिससे पाठक अपने अतित को भलिभाँति समझ सकते हैं। किसी भी समाज या राष्ट्र के संबंध में उसका गौरवमय अतीत बड़ा प्रेरणाप्रद होता है। इसलिए इसे जीवित रखना विद्वानों का कार्य है । इन टीकाकारोने व्याख्याकारोने इस कार्य को बड़ी सुंदरता से निष्पादित किया है। यह व्याख्या मूलक साहित्य ऐसा साहित्य है जो युग - युग तक जिज्ञासुओं और पाठकोंको प्रेरणा प्रदान करता रहेगा।
श्वेतांबर : दिगंबर परिचय
आगम
जैन धर्म श्वेतांबर और दिगंबर दो समुदायोंमें विभक्त है। मौलिक सिद्धांतों की दृष्टि से दोनोंमें कोई विशेष अंतर नहीं है किंतु आचार विषयक मान्यताओंमें और तद्नुसार कुछ सैद्धांतिक मान्यताओंमें अंतर हैं।
“श्वेतानि अंबराणि येषां ते श्वेतांबरा"८७ इस विग्रह के अनुसार जिनके वस्त्र सफेद होते है वे श्वेतांबर कहे जाते हैं। इसका आशय यह है कि - श्वेतांबर परंपराके साधु - साध्वी आगम निरुपित परिमाण और मर्यादा के अनुसार सफेद वस्त्र धारण करते हैं।
"दिशाएव अंबराणि येषां ते दिगंबरा"
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