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। अतएव व्यापक लाभकी दृष्टीसे यह विपुल साहित्य रचा गया।
इस व्याख्यामूलक साहित्यमें तात्विक सिद्धांतोंका, साधुओं की चर्याका तथा गृहस्थ उपासकोंकी व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक स्थितियोंका विभिन्न वर्गों के लोगोके कार्य, शिल्प, व्यवसाय, शिक्षा, कलाकृतियाँ, स्थापत्य, भवन निर्माण कला इ. की रचना हुई। जैसा बतलाया गया है - नियुक्तियाँ और भाष्य प्राकृत गाथाओंमें लिखे गये, चूर्णियों की रचना गद्यमें हुई । नियुक्ति और भाष्योंमें जैन धर्म के सिद्धांत विस्तार से प्रतिपादित नहीं किये गये। संक्षिप्त एवं सांकेतिक रुपमें वहाँ विवेचन हुआ। इसके अतिरिक्त नियुक्तियों और भाष्यों की गाथायें कई कई आपसमें मिश्रित होती गई इसलिए उनके माध्यमसे जैन दर्शन और आचार के सिद्धांतों को विशेष रुप से समझना साधारण पाठकों के लिये कठीन हो गया।
चूर्णियोंकी एक विशेषता यह रही कि - वहाँ प्राकृत के साथ- साथ संस्कृत भाषाका भी प्रयोग हुआ। इसके कारण भाषाकी रोचकता भी बढ़ी और विषयोके निरुपणमें अधिक अनुकूलतायें हुई। टीका:
चूर्णियों के बाद भी व्याख्यामूलक साहित्यकी रचना का क्रम आगे बढ़ता रहा । विद्वान आचार्यों ने संस्कृत में आगमों पर बड़े विस्तृत रुपमें वृत्तियों या टीकाओं की संस्कृत में रचना की। संस्कृत एक ऐसी भाषा है, जिसमें थोड़े शब्दोंमें विस्तृत भाव प्रकट किया जा सकता है।
_ आचारांग और सूत्रकृतांग पर आचार्य शिलांक द्वारा रचित टीकायें प्राप्त हैं। इन दोनों अंग सूत्रों का आगमोंमें सर्वोपरि महत्त्व है। आचार्य शिलांक की टीका के साथ इन आगमों का अध्ययन करने से जैन दर्शन के गहन तत्वोंको भलिभाँति समझा जा सकता है।
इन दो आगमों के अतिरिक्त बाकी के दो अंग आगमों पर आचार्य अभयदेव सूरिने टीकाओंकी रचना की। वे नवांगि टीकाकार कहे जाते हैं। उन द्वारा रचित टीकाओंका जैन साहित्यमें बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है।
अनेक विद्वान आचार्योंने आगमों पर और भी टीकाएँ लिखीं और अनेक विषयोंका यथा प्रसंग वर्णन किया है। ___ जैन आगमोंमें जो द्रव्यानुयोग मूलक आगम है वे तात्विक दृष्टिसे बहुत गंभीर है। टीकाकारों और व्याख्याकारोंमें उनमें वर्णित - आत्मा, कर्म, आश्रव, तपके विभिन्न भेद, उपभेद, पुद्गल का गहन विवेचन, परमाणुनवाद की विषद चर्चा अनेकविध परमाणुओके सम्मिलनसे निष्पन्न होनेवाली विभिन्न दशायें, कार्योत्सर्ग,ध्यान,स्वाध्याय आदि का बहुत ही
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