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जिज्ञासु मुनियों को उद्दिष्ट कर टीका का सर्जन किया। टीका का नाम शिष्यहिता है। अर्थात वह पढ़नेवाले शिष्यों या विद्यार्थियों के लिये बहुत लाभप्रद है। इस टीका में रचनाकारने छह आवश्यकों का पैंतीस अध्ययनोंमें विवेचन किया है। ___ वर्ण्य विषयोंका हृदयंगम कराने हेतू टीकाकारने प्राकृत एवं संस्कृतकी अनेक प्राचीन कथाओं का भी समावेश किया है।
आचार्य मलयगिरीने भी इस पर टीका की रचना की। आचार्य माणिक्यशेखर सूरिने इसकी नियुक्ति पर दीपिका लिखी। तिलकाचार्य ने भी इस पर लघुवृत्ति याने संक्षिप्त टिका की रचना की। इस पर इतने आचार्यों द्वारा टीकाओंकी रचनासे यह सिद्ध होता है कि - इस सूत्रका साधकों के जीवन में अत्यंत महत्त्व माना जा रहा है। आगमों का यह संक्षेप में परिचय है।
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प्रकीर्णक आगम साहित्य
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय में पैंतालीस आगम स्वीकृत है। श्वेताम्बर स्थानकवासी एवं तेरापंथी संप्रदायद्वारा पूर्व में विवेचित ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार छेद, चार मूल और एक आवश्यक - ऐसे बत्तीस आगम प्रामाणिक रूप से स्वीकार किये जाते हैं इन्हीं बत्तीस आगमों को मूर्तिपूजक संप्रदाय भी मानते है किंतु वे मूल सूत्र में पिण्डनियुक्ति - जिसका दूसरा नाम ओघनियुक्ति, छेदसूत्र में अहानिशीथ, पंच कल्प और दस प्रकीर्णक.. ऐसे तेरह आगम और अधिक मानते हैं। ____नंदीसूत्र के टीकाकार आचार्य मलयगिरी ने लिखा है कि तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण करके श्रमण प्रकीर्णकों की रचना करते हैं। प्रकीर्णक का आशय इधर - उधर बिखरी हुई सामग्री या विविध विषयों के संग्रह से है।
श्रमण भगवान महावीर के तीर्थ में १४००० प्रकीर्णक माने जाते थे किंतु वर्तमान में इसकी संख्या दस है । वे इस प्रकार है - १) चतु:शरण २) आतुरप्रत्याख्यान ३) महाप्रत्याख्यान ४) भक्तपरिज्ञा ५) तन्दुलवैचारिक ६) संस्तारक ७) गच्छाचार ८) गणविद्या ९) देवेन्द्रस्तव १०) मरण-समाधि अन्यत्र वीरत्थओ नाम भी है। किंतु इन नामों में भी एकरुपता दिखाई नहीं देती है। कहीं ग्रंथों में मरण-समाधि और गच्छाचार के स्थान पर चन्द्रवेध्यक और वीरस्तव को गिना है तो किन्हीं ग्रंथोंमें देवेन्द्रस्तव और वीरस्तव को सम्मिलित कर दिया गया है किंतु संस्तारक की परिगणना न कर उसके स्थान पर कहीं
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