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४) दशाश्रुत स्कंधसूत्रः
यह चौथा छेद सूत्र है । इसको आचार दशा कहा जाता है। इसके रचयिता आचार्य भद्र बाहु माने जाते हैं। इस पर नियुक्ति प्राप्त होती है। जैसा बतलाया गया है - जैन परंपरा में भद्रबाहु नामक एकाधिक अनेक आचार्य हुए हैं। विद्वानों का ऐसा मंतव्य है कि - जिन भद्रबाहु ने छेद सूत्र की रचना की। नियुतिकार भद्रबाहु इनसे भिन्न थे।
दशाश्रुत स्कंध पर चूर्णि की भी रचना हुई । ब्रह्मर्षी पार्श्वचंद्रियने वृत्ति या टीका की रचना की।
इस ग्रंथ में दस विभाग हैं। आठवें और दशवें विभाग को अध्ययन कहा गया है और बाकीके विभागोंको दशा कहा गया है। इनमें असमाधिके स्थानोंकी चर्चा की गई है। अनाचरण रात्रिभोजन, राजपिंड ग्रहण आदि का वर्णन किया गया है। उनमें और दो सौ प्रायश्चितों का वर्णन है। आठ प्रकार की गणि संपदाओं या गणाधिपति आचार्य के व्यक्तित्व की विशेषताओंका वर्णन किया गया है। जैसे आचार संपदा, श्रुतसंपदा, शरीर संपदा, वचन संपदा, वाचना संपदा मतिसंपदा, प्रयोगमति संपदा तथा संग्रह संपदा ।७२१५
___ भगवान महावीर के जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान तथा मोक्ष का विस्तार से वर्णन है। एक प्रसंग में महामोहनीय कर्मबंध के तीस स्थानों का प्रतिपादन है।
इस प्रकार साधु जीवनमें आशंकित दोष, उनका निराकरण उनकी आलोचना, प्रायश्चित, इत्यादि के साथ साथ जैन आचार- विधाओं और मर्यादाओंका विभिन्न प्रसंगोंमें बड़ा विषद विवेचन हुआ है।
आवश्यक सूत्र : __ आवश्यक शब्द अवस्य से बना है। जहाँ किसी कार्य को किये बिना रहना उचित नहीं माना जाता। किसी भी स्थिति में टाला नहीं जाता। उसे अवश्य किया जाता है। आवश्यक सूत्रमें साधुओंको करणीय छह आवश्यक क्रिया, अनुष्ठानों या नित्य कर्मोंका विवेचन है। सामाईक, चतुर्विशंतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण , कायोत्सर्ग एवं प्रत्याख्यान ये छह आवश्यक अवश्य करणीय अनुष्ठान है।
__ आचार्य हरिभद्र बाहुने इस पर नियुक्ति का प्रणयन - (रचना) की है। इस पर आचार्य जिनभद्र गणि क्षमा श्रमण गणिने विशेषावश्यक भाष्य की रचना की जो तत्व एवं आचार विषयक सिद्धांतों के निरुपण को दृष्टि से जैन साहित्य में बहुतही प्रसिद्ध है।
जिनदास गणिमहत्तरने इस पर चूर्णि की रचना की। आचार्य हरिभद्रसूरिने अध्ययनशील