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तृतीय वस्तुके बीसवें प्राभृत में प्रायश्चित्त का विधान किया गया है। कालक्रमसे पूर्वोका पठन पाठन बंद हो गया, जिससे प्रायश्चितों का उच्छेद हो गया, अत: आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने बृहत् कल्पसूत्र और व्यवहार सूत्र की रचना की। तथा इन दोनों छेद सूत्रों पर नियुक्ति लिखी।
__ बृहत् कल्प पर संगदास गणि क्षमा श्रमण ने लघुभाष्य की रचना की । भाष्य पर मलयगिरीने विवरण लिखा जो अपूर्ण रहा । जिसे लगभग सव्वादो सौ वर्षों पश्चात संवत् १३३२ में क्षेम किर्ती सूरिने पूर्ण किया। इसमें कल्पनीय एवं अकल्पनीय वस्तुओं के ग्रहण करने और न ग्रहण करने का विस्तार से वर्णन है। साधु-साध्वियों को किस प्रकार बोलना चाहिये । भोजन, पान आदिसे संबंधित क्रिया, मर्यादा, नियम आदि विषयोंका समीचीन रूपमें वर्णन किया गया है।99-73
आगम गृह - सार्वजनिक स्थान, खुले हुए घर, घरके बाहर का चबूतरा, वृक्षमूल आदि के स्थानों में साध्वियोंका रहने का निषेध है। इस प्रकार चारित्र पालन में उपयोगी नियमो का वर्णन है। ३) निशीथ सूत्र :
छेद सूत्रमें निशीथ सूत्र सबसे बड़ा है। जिसका स्थान सर्वोपरि माना गया है। इसे आचारांग सूत्रके द्वितीय श्रुतस्कंधकी पाँचवी चूला मानकर आचारांगकाही एक भाग माना जाता है। इसे निशीथ चूला अध्ययन माना जाता है। इसका दूसरा नाम आचार कल्प है।
निशीथका अर्थ अर्धरात्रि या अप्रकाश कहा गया है। जैसे रहस्यमय विद्या, मंत्र, एवं योग को प्रकट नहीं करना चाहिये इसी प्रकार निशीथ सूत्र को अर्धरात्रि के तुल्य अप्रकाश्य या गोपनीय रखना चाहिये, क्योंकि इसमें साधु - साध्वियों को उनके जीवनसे संबंधित होनेवाली भूलोंकी जानकारी दी गई है जिन्हें उन्हीं को जानना चाहिये तथा अपनी आत्माका परिष्कार करनी चाहिये।
यदि कोई साधु कदाचित निशीथ सूत्र को भूल जाये तो वह आचार्य पदका अधिकारी नहीं हो सकता। इस सूत्रमें साधुओके आचारसंबंधी, उत्सर्ग विधि और अपवाद विधिका तथा प्रायश्चित आदि का सूक्ष्म विवेचन है। ऐसा माना जाता है कि - नौवें प्रत्याख्यान नामक पूर्व के आधार पर इस सूत्र की रचना हुई।
इस सूत्र के २० उद्देशक है। प्रत्येक उद्देशक में अनेक सूत्र हैं। सूत्रों पर नियुक्ति है। सूत्रों और नियुक्ति पर संघदास गणिका भाष्य है। सूत्र नियुक्ति और भाष्य पर जिनदास गणि महत्तरने चूर्णिकी रचना की।
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