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________________ आयुद्धों के कारण किसी भी क्षण विश्वका विनाश हो सकता है। ऐसी विषम परिस्थितियों में आशारुपी एक ही ऐसा दीप है जो दुनिया को प्रलयरुपी अंधकार में मार्ग दिखा सकेगा। वह आशारुपी दीप तत्वज्ञान और महामंत्र नवकार है। विज्ञान के साथ अगर तत्वज्ञान और महामंत्रनवकार जुड़ जाएँ तो विज्ञान विनाश के स्थान पर विकास की दिशा में आगे बढ़ेगा। विज्ञान की शक्ति पर तत्वज्ञान का अंकुश होगा, तभी विश्वमें सुखशांति रहेगी। तत्वज्ञान और महामंत्र नवकार अमृततुल्य रसायन है वही इस विश्वको असंतोष और अशांति की व्याधि से मुक्त कर सकता है । विज्ञान के कारण भौतिक साधनों की बड़ी उन्नति हुई हैं। उनके कारण मानव को बाह्य सुख तो प्राप्त हुआ है। लेकिन आध्यात्मिक दुनियामें कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है। आज विज्ञान की जितनी उपासना हो रही हैं, उतनी तत्वज्ञान की उपेक्षा हो रही है। यही कारण है कि - मानव को आत्मशांति प्राप्त नहीं हो रही है। तत्वज्ञान के कारण तथा महामंत्र नवकार मंत्र के कारण ऐसी शांति प्राप्त होती है जिससे संसार के सारे पाप, ताप, संताप दूर होते हैं तथा शीलता प्राप्त होती हैं। आज विज्ञान जीवन के सब क्षेत्रोंमे प्रगतिकर उसमें खूब क्रांति और उत्क्रांति लाया है । वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण मानव शक्तिशाली बना है, यह निर्विवाद सत्य हैं, परंतु इस शक्ति का उपयोग किस प्रकार करना है इसका निश्चय विज्ञान नहीं कर सकता । शक्ति का उपयोग विकास के लिए करना है या विनाश के लिए यह मानव के हाथ में हैं। यह निर्णय लेने में तत्वज्ञान और आध्यात्म मानव के मार्गदर्शक हो सकते हैं। प्रख्यात शास्त्रज्ञ तथा गणितज्ञ आलबर्ट आईनस्टाईनने अणु शक्ति का अविष्कार किया , यह अणुशक्ति जिस मूल द्रव्यसे निर्मित होती है वह दश पौंड़ यूरेनियम संसार को एक महिने तक बिजली उपलब्ध करा सकता है और मानव जीवन अधिक सुखी कर सकता है, परंतु वही यूरोनियम ओटमबॉम्ब तैयार करने के लिए उपयोग में लाया जाए तो मानव जीवन नष्ट भी हो सकता है। अमेरिका ने अणुशक्ति का उपयोग करके अणुबॉम्ब तैयार किये, और हिरोशिमा तथा नागासाकी इन दों जापानी शहरों पर उन्हें गिराकर लाखों लोगों का जीवन ध्वस्त किया, इसलिए मानवीय प्रगति अगर सच्चे अर्थों में हो तो विज्ञान और तत्वज्ञान का साथ आवश्यक हैं। विज्ञान और तत्वज्ञान प्रगति के रथ के दो पहिये हैं। रथ चलाने के लिए जिस प्रकार दो पहिये आवश्यक होते हैं, उसी प्रकार प्रगति के कदम सहि दिशामें बढ़ाने केलिए विज्ञान तत्वज्ञान और धर्म का साथ अत्यंत आवश्यक हैं। विज्ञानरुपी मोटार के लिए तत्वज्ञानरुपी
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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