________________
प्रस्तावना
“मंत्रों में परमेष्ठी मंत्र ज्यों, व्रतों में ब्रह्मचर्य महान । तारागण में ज्यों चंदा है, पर्वत बड़ा सुमेरु जान । नदी में गंगा, काष्ठ में चंदन, ज्यों देवों में इन्द्र महान ।
त्यों सभी में साधु उत्तम, साक्षी आगम वेद पुरान।" जिस प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत महान हैं, तारागणों में चंद्र पर्वतोंमें सुमेरु पर्वत, नदियोंमें गंगानदी, सुगंधोंमें चंदन की सुगंध तेज होती है। देवों में इंद्र महान होते हैं। वृक्षोंमें कल्पवृक्ष श्रेष्ठ होता है, वनोंमें नंदनवन मुख्य होता है। पक्षियों में गरुड पक्षी श्रेष्ठ हैं। फूलोंमें गुलाब श्रेष्ठ है। वैसेही सभी मंत्रों में नवकार मंत्र श्रेष्ठ है, तथा साधु श्रेष्ठ है ऐसा आगम वेद पुरान कहा
(आज का युग विज्ञानका युग है । इस युग में विज्ञान शीघ्र गति से आगे बढ़ रहा है। विज्ञान के नवनवीन आविष्कार विश्वशांति का आह्वान कर रहे हैं । संहारक असशस्त्र विद्युत गतिसे निर्मित हो रहे हैं। __ आज मानव भौतिक स्पर्धा के मैदानों में तीव्रगति से दौड़ रहा है। मानवकी महत्त्वाकांक्षा आज दानव के समान बढ़ रही है। परिणामत: मानव निर्जिव यंत्र बनता चला जा रहा है। विज्ञान के तुफान के कारण धर्मरुपी दीपक तथा तत्वज्ञानरुपी दीपक करीब-करीब बुझनेकी अवस्थापर पहुँच गये हैं। ऐसी परिस्थितियों में आत्मशांति तथा विश्वशांति के लिए विज्ञान की उपासना के साथ तत्वज्ञान की उपासना भी अति आवश्यक है।
आज दो खंड आमने सामने के झरोखे के समान करीब आ गये हैं। विज्ञान ने मनुष्य को एक दूसरे से नजदीक लाया है, परंतु एक दूसरे के लिए स्नेह और सद्भाव कम हो गया है। इतनाही नहीं मानव ही मानव का संहारक बन गया है।
विज्ञानका विकास विविध शक्तियों को पार कर अणुके क्षेत्र में पहुंच चुका है। मानव जल, स्थल तथा नभ पर विजय प्राप्त कर अनंत अंतरिक्ष में चंद्रमा पर पहुंच चुका है इतनाही नहीं अब तो मंगल तथा शुक्र ग्रह पर पहुँचने का प्रयास भी जारी हैं। भौतिकता के वर्चस्वने मानव हृदय की कोमल वृत्तियों, श्रद्धा, स्नेह, दया, परोपकार, नीतिमत्ता सदाचार तथा धार्मिकता आदि को कुंठित कर दिया है। मानव की आध्यात्मिक और नैतिक जीवन का अवमूल्यन हो रहा है।
विज्ञान की बढ़ती हुई उद्दम शक्ति के कारण विश्व विनाश के कगार पर आ पहुंचा है। अणु