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________________ इसमें काव्य शास्त्र निरुपित नौरस उनके उदाहरण, संगीत संबंधी स्वर, उनके लक्षण, ग्राम, एवं मूर्च्छना आदिका विवेचन है। इसमें जैनेत्तर मतवादियों की भी चर्चा है। व्याकरण संबंधित धातु, समास, तद्धित तथा निक्ति - व्युत्पत्ति आदि का विस्तार से विवेचन किया गया है। विभिन्न प्रकार के कर्मकरों या व्यवसायों तथा शिल्पियों की भी चर्चा है। इस सूत्र पर जिनदास महत्तरने चूर्णिका की रचना की। आचार्य हरिभद्र तथा मलधारी हेमचंद्र ने टीकाओं की रचना की। चार छेद सूत्र - परिचय सबसे पहले 'छेदसूत्र' इस शब्द का प्रयोग आवश्यक नियुक्ति इसमें मिलता है ।७० इससे पहले की कोई भी प्राचीन साहित्य में 'छेदसूत्र' नाम नही आया। इसके बाद आचार्य जिनभद्र गणि क्षमाक्षमण इन्होंने विशेषावश्यक भाष्यमें७१ इसी प्रकार संघदास गणि इन्होने 'निशीय भाष्य' इस ग्रंथ में ध्येय सूत्र का उल्लेख किया है।७२ ।। छेद सूत्र जैन आगमों का प्राचीनतम भाग है। अत: अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इन सूत्रोंमें साधु साध्वियों के प्रायश्चित के विधि विधानोंका प्रतिपादन है। यह सूत्र चारित्र की शुद्धि स्थिर रखनेमें हेतुभूत हैं । इसलिए इसे उत्तम श्रुत कहा जाता है। इन सूत्रोंमें साधु - साध्वियों के आचार, विचार संबंधी नियमों का वर्णन है। जिनके - नियमों को भगवान महावीरने और उनके शिष्योने देश कालकी स्थितितयों के अनुसार साधु संघके लिये निश्चित - निर्धारित किया था। बौद्ध धर्म के तीन पिटकोंमें पहले विनय पिटक के साथ इनकी तुलना की जा सकती है। बौद्ध धर्म में जैसा पहले संकेत किया गया है, विनय शब्द आचार या चारित्र के अर्थ में है। वहाँ भिक्षुओं के नियमोपनियम वर्णित हैं। आचार्य के लिये छेद सूत्रों का गहन अध्ययन बताया गया है। इनका अध्ययन किये बिना आचार्य या उपाध्याय जैसे महत्त्वपूर्ण पदोंका कोई अधिकारी नहीं हो सकता। छेद सूत्र संक्षिप्त शैलीमें रचे गये हैं। १) व्यवहार सूत्र २) बृहत्कल्प सूत्र ३) निशीथ सूत्र ४) दशशाश्रुत स्कंध - ये चार छेद सूत्र माने जाते हैं । कतिपय विद्वानोने निशीथसूत्र, महानिशीथ, व्यवहार सूत्र, दशाश्रुत स्कंध, कल्पसूत्र (बृहद् कल्प) तथा पंचकल्प - जितकल्प ये छह छेद सूत्र माने हैं। (३६)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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