SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसमें ३६ अध्ययन हैं। इसकी रचना अधिकांशतः पद्यात्मक शैली में है। शब्दरचना इतनी सुंदर है कि- इसे धार्मिक काव्य भी कहा जा सकता है। इसमें उपमा, रूपक, दृष्टांत आदि अलंकारों का सहज रूपमें प्रयोग हुआ है। जिससे वर्णित विषय बड़े सरस और प्रेरक रूपमें प्रगट हुए हैं। सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ. विंटरनिझने इसकी गीता, धम्मपद और सुत्तनिपात आदि के साथ तुलना की है। इसमें जैनधर्म और दर्शन के संक्षेप में सार तत्व संकलित है। आचार्य भद्रबाहुने इस पर निर्यक्ति की रचना की, तथा जिनदास गणि महत्तरने चूर्णि लिखी । आचार्य लक्ष्मीवल्लभ, जयकीर्ति, कमलसंयम, भाव विजय, विनयहंस, हर्षकूल आदि अनेक विद्वानों ने इस पर टीकायें लिखी। सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान डॉ. हर्मन जेकोबीने अंग्रेजी अनुवाद सहित इसे प्रकाशित किया। ३) नंदी सूत्र : नंदी सूत्र अन्य आगमों के साथ अर्वाचीन है। ऐसी मान्यता है कि - इसके रचनाकार देववाचक थे। उनके गुरु का नाम दूष्यगणि था। नंदी सूत्रमें ९० पद्यात्मक गाथायें हैं और ६९ सूत्र है। प्रारंभिक गाथाओंमें भगवान महावीर, धर्मसंघ एवं श्रमण वृंद का संस्तवन किया गया है। जैन स्थविरावली या जैन आचार्य परंपरा का इसमें क्रमानुबद्ध वर्णन है। प्रथम सूत्रमें मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान मन:पर्यवज्ञान और केवलज्ञान का उल्लेख हैं। ज्ञान के भेद प्रभेदों का विस्तार से वर्णन किया गया है, जो शास्त्राध्याताओं और जिज्ञासुओं के लिये बहुत उपयोगी है। सम्यक् सूत के अंतर्गत बारह अंगों की चर्चा हैं । यह बतलाया गया है कि - वे सर्वज्ञों, सर्वदर्शियों द्वारा भाषित हैं। श्रुत के भेदों की भी कई अपेक्षाओंसे चर्चा आई है। अंग प्रविष्ट और अंगबाह्य के रुपमें उनके दो भेद बतलाये गये हैं। अंग प्रविष्ट भी आगम कहलाते हैं, जो गणधरों द्वारा संकलित या प्रणित है। अंगबाह्य उन शास्त्रों या ग्रंथोंका नाम है जो स्थवीर मुनिवृंद द्वारा विरचित है। जिनदास गणि महत्तरने इस पर चूर्णि तथा आचार्य हरिभद्र एवं मलयगिरीने टीकाओं की रचना की है। ४) अनुयोग द्वार : यह सूत्र आचार्य आर्य रक्षित द्वारा रचा गया ऐसी मान्यता है । भाषा का प्रयोग तथा विषयों के प्रतिपादन आदि की अपेक्षासे यह सूत्र काफी अर्वाचीन प्रतित होता है। प्रश्नोत्तर की शैलीमें इसमें नय, निक्षेप, अनुगम, संख्यात, असंख्यात, पल्योपम, सागरोपम एवं अनंत आदि का वर्णन है।
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy