________________
प्राप्त करने का वर्णन है। इसलिये यह औपपातिक कहा जाता है। __गौतमने जीव, अजीव, कर्म आदि के संबंधमें भगवान महावीर से प्रश्न किये। भगवान महावीरने उसका उत्तर दिया। इस प्रकार तत्वज्ञान संबंधी अनेक विषय इसमें है। भगवान महावीर के समयमें जो जैनेत्तर धर्म संप्रदाय प्रचलीत थे, उन वानप्रस्थीतापसों, श्रमणों, परिव्राजकों, आजीविका तथा निन्हवों का भी वर्णन प्राप्त होता हैं। ___ इसमें नगर, राजा आदि का जो वर्णन आया है वह सर्व समान्य है। दूसरे आगमोंमें जहाँ भी ये विषय आते हैं वहाँ प्राय: औपपतिक सूत्रमें आये हुए वर्णनों से लेने का संकेत है। २) राजप्रश्नीय सूत्रः
यह दूसरा उपांग है। इसमें परदेशी राजा और भगवान पार्श्वनाथ की परंपरा के मुनि केशीकुमार श्रमणके प्रश्नोत्तर है। परदेशी सेयविया नगरी का राजा था। वह नास्तिक था। आत्मा स्वर्ग, नरक, पुण्य, पाप आदि में विश्वास नहीं करता था। ___ केशीकुमार श्रमणने न्याय और युक्ति पूर्वक ये तत्व समझाये । राजाके विचार बदल गये और वह आस्तिक बन गया।
इस सूत्रमें कला, शिल्प, आदि का वर्णन हैं बहत्तर कलाओं का उल्लेख हैं कंबोज देश के अश्व आदिका वर्णन हैं। आचार्य मलयगिरीने बारहवीं शताब्दीमे इसपर टीका की रचना की। ३) जीवा जीवा भिगम सूत्रः
यह तीसरा उपांग है। इसमें गणधर गौतम और भगवान महावीर के प्रश्नोंत्तरोके रुपमें जीव एवं अजीव तत्वों के भेद प्रभेदोंका अभिगम - विस्तृत विवेचन है। इस सूत्रमें नौ प्रकरण या प्रतिपत्तियाँ हैं। जिनमें दो सौ बहत्तर सूत्र हैं।
तृतीय प्रकरण सबसे विस्तृत है। उसमें द्विपों, सागरों का वर्णन हैं। रत्न, अस्न, धातु, मद्य, पात्र आभूषण, भवन, वन, मिष्टान्न, दास, पर्वजन्य त्योहार, उत्सव, यान, व्याधी, आदिका वर्णन हैं।
आचार्य मलयगिरीने इसपर टीका की रचना की। आचार्य हरिभद्र सूरि और आचार्य देवसूरिने इसपर लघु वृत्तियों की रचना की। ४) प्रज्ञापनासूत्र :
यह चौथा उपांग है । प्रज्ञापना का अर्थ विशेष रुपमें ज्ञापित करना, ज्ञान, कराना या समझाना है। इसमें ३४९ सूत्र हैं। जिनमें प्रज्ञापना, स्थान, लेश्या, समुद्धात, आदि
(३०)