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________________ सूत्र से लेनेका संकेत किया गया है। इसमें श्रेणिक की कालि आदि रानियोंद्वारा की हुई तपस्या का वर्णन है।६३ इसमें कुल नब्बे मोक्षगामी जीवोंका वर्णन है। ९) अनुत्तरौपपातिक सूत्रः ये नववां अंग है। इसमें अपने पुण्यप्रभावसे अनुत्तर विमानोंमें उत्पन्न होनेवाले विशिष्ट महापुरुषोंका वर्णन हैं। इसमें उपासक दशांग और अंतकृत दशांग की तरह इसमें भी पहले दश अध्ययन थे, किंतु अब कुल तीन वर्ग बाकी रह गये हैं। सर्वत्र एक सी शैली है। इसमें काकंदी नगरी के धन्ना सेठ के दीक्षा ग्रहण कर अत्यंत कठीन तपस्या कर शरीर दमन किया, वे एकावतारी होकर मोक्ष जायेंगे यह सारा वर्णन इसमें है। आचार्य अभयदेवसुरिने इस पर टीका लिखी ६४ १०) प्रश्नव्याकरण सूत्र यह दशवाँ अंग है। प्रश्न तथा व्याकरण इन दो शब्दों से बना है। प्रश्न का अर्थ पूछना या जिज्ञासा करना है। व्याकरण का अर्थ व्याख्या करना या उत्तर देना है। वर्तमानकालमें इस सूत्र का जो हमें रुप प्राप्त होता है उसमें कहीं भी प्रश्नोत्तर नहीं है। केवल आश्रवद्वार और संवरद्वार रुपमें वर्णन प्राप्त होता है६५ आश्रवद्वार में प्राणातिपात, विरमण आदि पांच संवरोंका वर्णन है। स्थानांग और नंदी सूत्रमें, प्रश्नव्याकरण सूत्र में विषयोंका जो उल्लेख हुआ है। वर्तमान में इस सूत्र का जो रुप उपलब्ध है,उसमें वे विषय प्राप्त नहीं होते ऐसा प्रतीत होता है कि इसका प्राचीन रुप विच्छिन्न हो गया। वर्तमान रूपमें हिंसादि, आश्रव द्वारोंका तथा अहिंसादि संवर द्वारोंका जो वर्णन इसमें प्राप्त होता है वह, हिंसा - अहिंसा आदि तत्वों को विषद रुपमें समझने में बहुत उपयोगी है। आचार्य अभय देव सूरि की इस पर टीका प्राप्त है। आचार्य - श्री देवेंद्र मुनि म. ने प्रश्नव्याकरणसूत्रकी प्रस्तावनामें लिखा है कि, वर्तमान प्रश्नव्याकरण भगवान महावीर के प्रश्नों के उत्तरों का आंशिक भाग है। ६६ ११) विपाक सूत्रः ___ विपाक का अर्थ फल या परिपाक है। इसमें पापों और पुण्योंके विपाक या फल का वर्णन है। इसलिये यह विपाक के नाम से प्रसिद्ध है। स्थानांग के अनुसार इसमें दस अध्ययन होने चाहिये, किंतु इसमें बीस अध्ययन है। जो दो श्रुत स्कंधोंमें विभाजित है। पहला श्रुतस्कंध दुःखविपाक और दूसरा सुखविपाक के नामसे प्रसद्धि है। गणधर गौतम (२८)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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