SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६) ज्ञातृ धर्म कथा सूत्र : यह छठ्ठा अंग है। इसको “नायधम्म कहा" ज्ञात धर्म कथा भी कहा जाता है। ज्ञात का अर्थ उदाहरण है। इसमें उदाहरण और धार्मिक कथायें है। धर्म के सिद्धांत, आचार, आदिका इसमें विवेचन है। विद्वानोने भाषा, वर्णन, शैली आदि की दृष्टिसे इसे प्राचीनतम आगमोंमें माना है। इसमें दो श्रुतस्कंध है। पहले श्रुतस्कंधमें उन्नीस अध्ययन है और दूसरेमें दस वर्ग है। आचार्य अभयदेव सूरिने इस पर टीका लिखी। ७) उपासक दशांग सूत्रः यह सातवां अंग है। अंग सूत्रोंमें यह एक ऐसा आगम है जिसमें श्रावकोके जीवनका, व्रतोंका, विस्तारसे विवेचन है। इसमें दश अध्ययन हैं। प्रत्येक अध्ययन में एक -एक श्रावक का जीवन वृत्तांत दिया गया है। इसके प्रथम अध्ययनमें आनंद श्रावकका वृत्तांत है जो भगवान महावीर का परम भक्त था । उसकी संपत्ति, परिवार, व्यापार, रहन, सहन, आदिका विस्तारसे वर्णन किया गया है। जिनसे हमें उस समयके लोक जीवन का परिचय प्राप्त होता है। यह भी ज्ञात होता है किविपुल संपत्तिके स्वामी होते हुए भी धर्म के प्रति वे बहुत आकृष्ट रहते थे । धर्माचरण और धर्मोपासनामें रूचि लेते थे। उनके जीवन में धार्मिकता, पारिवारिकता, सामाजिकता का बड़ा सुखद समन्वय था। भगवान महावीर से आनंद श्रावक ने जिस प्रकार व्रत ग्रहण किये वह प्रसंग बड़ा ही उद्बोधप्रद है। वहाँ प्रत्येक व्रतका तथा उसके अतिचारों का विशद रूपमें वर्णन किया गया है। आनंद श्रावक ने संपत्ति, भोगोपभोग आदि में जो अपवाद रखें, उनमें उसके जीवन की सरलता, सादगी और बुद्धिमत्ता प्रगट होती है। ____ अन्य श्रावकों का जीवन भी बहुत उन्नत था। धर्म पालन में विघ्न आनेपर भी उन्होंने धर्म का परित्याग नहीं किया। आचार्य अभयदेव सूरिने इस पर टीका की रचना की। ८) अंतकृत् दशांग सूत्रः ___ जैसे उपासक दशांग सूत्र में उपासकोंकी कथायें है उसी प्रकार इसमें संसारका अंत करनेवाले केवलियोंकी कथायें हैं इसलिये इसका नाम अंतकृत दशांग सूत्र है। इसमें जो कथायें आयी है, वे प्राय: एक जैसी शैलीमें लिखी गई है। वहाँ कथाओके कुछ अंशकाही वर्णन किया गया है। बाकी के अंश व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र से या ज्ञातृधर्म कथांग (२७)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy