________________
४) समवायांग सूत्र
यह चौथा अंग है । स्थानांग सूत्रकी तरह इसमें भी संख्याओके आधार पर वर्णन है । थांग सूत्र में सतक की संख्यायें ली गई है। इसमें एक से लेकर कोटानुकोटी संख्यातक की वस्तुओं का उल्लेख है। द्वादशांगीकी संक्षिप्त हुण्डी भी इसमें उल्लिखित है । ज्योतिषचक्र, दंड़क, शरीर, अवधिज्ञान, वेदना, आहार, आयुबंध, संहनन, संस्थान, तीनों कालों के कुलकर, वर्तमान चौबीसी, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव प्रतिवासुदेव आदि नाम उनके माता-पिताके पूर्व भवके नाम तीर्थंकरों के पूर्वभवों के नाम तथा ऐरावत क्षेत्र की चौबीसी आदि के नाम भी बतलाये गए हैं। यह गहन ज्ञान का खजाना है। अभय देव सूरिने इस पर टीका लिखी ।
५) व्याख्या प्रज्ञप्ति - ( भगवती ) सूत्र :
व्याख्या का अर्थ विश्लेषण और प्रज्ञप्ति का अर्थ प्ररूपण होता है । इस सूत्र में जीवादि व्याख्याओं का प्ररुपण या विवेचन है । इसलिये इसे व्याख्या प्रज्ञप्ति कहा जाता है ।
ये व्याख्यायें प्रश्नोत्तरों के रूपमें हैं। इस पाँचवें अंगमें एक श्रुतस्कंध है, ४१ शतक और १००० उद्देशक हैं। इसमें छत्तीस हजार प्रश्नोत्तर हैं । भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य गणधर गौतम भगवान से जैन सिद्धांतों के बारे में प्रश्न करते हैं ।
इस सूत्र कुछ ऐसे भी संवाद है जिनमें अन्य मतवादियों के साथ भगवान महावीर का वाद- विवाद या वार्तालाप उद्धृत है। इस सूत्र में ऐसे प्रसंग भी है जिससे भगवान महावीर के विषयमें ज्ञात होता है ।
इसमें भगवान के लिए वैशालिय श्रावय - वैशालिक श्रावक शब्द आया है । जिससे यह प्रगट होता है कि भगवान महावीर वैशाली के थे । अनेक स्थलों पर ऐसे वर्णन आते हैं जहाँ भगवान पार्श्वनाथ के शिष्योने चातुर्याम धर्म को छोड़कर भगवान महावीर के पंचमहाव्रत अंगीकार किये ।
इस सूत्र में गोशालक का विस्तार से वर्णन है । नौमल्ली और नौ लिच्छवी गण राज्यों का इसमें उल्लेख है । उदायन, मृगावती, जयंती आदि भगवान महावीर के अनुयायी की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है ।
अंग, बंग, माल्य, मालवय, आदि सोलह जनपदों का इसमें उल्लेख मिलता है।
इस सूत्रमें जैन सिद्धांत, आचार और इतिहास संबंधी इतना विस्तार से वर्णन है कि इस एक आगमके अध्ययन से अध्येताको जैन धर्म का यथेष्ट ज्ञान हो सकता है।
इस पर आचार्य अभयदेव सूरिने टीका लिखी ।
(२६)