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________________ स्त्रीपरिज्ञा अध्ययनमें साधुओं को स्त्रीजन्य उपसर्ग को आत्मबल के साथ सहन करना चाहिये और निवारण करना चाहिये । द्वितीय श्रुतस्कंधमें सात अध्ययन हैं । पुंडरिक अध्ययन में इस लोक को पुष्करणी की उपमा दी गई है। तद्ज्जीव, तज्जशरीर, पंचमहाभूत, ईश्वर तथा नियतिवाद का खंडन किया गया है। साधु को असन, पान, खाद्य, स्वाद्य आदि पदाथोंको मर्यादा, नियम और विरक्ति भाव के साथ ग्रहण करना चाहिए। क्रिया स्थान अध्ययनमें क्रिया स्थानों का, आहार परिज्ञा अध्ययन में वनस्पतियाँ, जलचर तथा पक्षी आदि का और प्रत्याख्यान के अध्ययनमें जीव हिंसा हो जाने पर प्रत्याख्यान की आवश्यकता का विवेचन हैं। आचारश्रुत अध्ययन में साधुओके आचार का वर्णन है। सातवें अध्ययन का नाम नालंदिय अध्ययन है। गौतम गणधर नालंदा में लेप नामक गृहपति के हस्तीयाम नामक वनखंडमें ठहरे थे । यहाँ भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य उदक पेढ़ाल पुत्र के साथ विचार विमर्श हुआ। परिणाम स्वरुप उदक पेढ़ाल पुत्र ने चातुर्याम धर्म के स्थान पर पाँच महाव्रत स्वीकार किये ।६२ आचार्य भद्रबाहुने सुत्रकृतांग सूत्र पर नियुक्ति की रचना की। जिनदास महत्तरने इस पर चूर्णि लिखी। आचार्य शिलांक ने संस्कृतमें इस पर टीका की रचना की। मुनि हर्षकुल और साधुरंग ने दिपिकायें लिखी। जर्मनी के सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ. हर्मन जेकोबी ने इसका अंग्रेजीमें अनुवाद किया। भाषा और विवेचन की दृष्टि से आचारंग सूत्र की तरह यह भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। ३) स्थानांग सूत्र यह तीसरा अंग है। इसमें अन्य आगामों की तरह उपदेशोंका संकलन नहीं है, किंतु यहाँ स्थान या संख्या के क्रमसे लोकमें प्रचलित एक से दस तक की विभिन्न वस्तुओं गिनाई गई है। साधु - श्रावक के आचार गोचर का कथन है । यह शास्त्र विद्वानोंके लिये बड़ा चमत्कार जनक है। बौद्ध साहित्यमें अंगुत्तरनीकाय इसी प्रकारका ग्रंथ है। स्थानांग सूत्रमें दस अध्ययन है। तथा ७८३ सूत्र हैं। आचार्य अभय देव सूरिने इस पर संस्कृतमें टीका लिखी। (२५)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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