SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इरिया अध्ययन में साधुके विहार या विचरण विषयक नियमोंका विवेचन है। बतलाया गया है कि - देश की सीमा पर निवास करनेवाले अकालचारी - बिना समय घूमनेवाले तथा अकालभक्षी बिना समय चाहे जो खानेवाले, दष्यु-डाकु, म्लेच्छ और अनार्य आदि के देशोंमें साधु-साध्वियों को विचरण नहीं करना चाहिये। भाषा अध्ययन में भाषा संबंधी नियमोंका, वस्नैषणा अध्ययनमें वनसंबंधी नियमोंका एवं अवग्रह प्रतिमा अध्ययन में उपाश्रय संबंधी नियमोंका वर्णन है। ये सात अध्ययन प्रथम चुलिका के अंतर्गत हैं। द्वितीय चूलिका में भी स्वाध्याय स्थान आदि के संबंध में साधुसाध्वियों के नियमों का विधान है। तीसरी चूलिका में भगवान महावीर का चरित्र और महाव्रत की पाँच भावनाओंका तथा मोक्ष का वर्णन है। ___ इस सूत्र पर आचार्य भद्रबाहुने नियुक्ति, जिनदास गणि महत्तरने चूर्णि और आचार्य शिलांकने टीका की रचना की। जिनहंस नामक आचार्य ने इस पर दिपिका लिखी। जर्मन के प्रसिद्ध विद्वान - डॉ. हर्मन जेकोबीने इसका अंग्रेजीमें अनुवाद किया और इसकी गवेषणापूर्ण प्रस्तावना लिखी। सबसे पहले आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध सन् १९१० में प्रॉफेसर वोल्टरने सूब्रींग नामक जर्मन विद्वान द्वारा संपादन किया गया तथा जर्मनी में 'लिपजग' में प्रकाशन हुआ। २) सूत्रकृतांग सूत्र सूत्रकृतांग सूत्रमें स्वसमय अपने तथा जैन धर्म के सिद्धांतों तथा पर समय अन्यमतवादियोके सिद्धांतों का वर्णन हैं। इसमें दो श्रुतस्कंध है। पहले श्रुतस्कंधमें एक अध्ययन के अतिरिक्त और सब अध्ययन पद्यबद्ध है। दूसरे अध्ययनमें गद्यपद्य दोनों हैं। पहले श्रुतस्कंध में पंचभूतवादी, अद्वैतवादी, जीव और शरीर को अभिन्न माननेवाले, जीव पुण्य और पापका कर्ता नहीं है, ऐसा माननेवाले पांच भूतों के साथ छठ्ठा आत्मा है, ऐसा स्वीकार करनेवाले, कोई भी क्रियाफल नहीं देती ऐसा माननेवालों के सिद्धांतों का विवेचन है। नियतिवाद, अज्ञानवाद जगतकर्तृत्ववाद एवं लोकवाद का इसमें खंडन किया गया है। वैताढ़िय अध्ययनमें शरीर के अनित्यत्व उपसर्ग सहिष्णुता, काम परित्याग और अशरणत्व आदि का प्रतिपादन है। उपसर्ग अध्ययनमें संयम पालनमें आनेवाले उपसर्गों, विघ्नों या कष्टोंका वर्णन हैं। (२४)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy