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________________ दर्शन एवं जैन दर्शन के आलोक में विश्वकी वास्तविकता, आयतन व आयु की मीमांसा के अंतर्गत दिगंबर - एवं श्वेतांबर - परंपरा की मान्यता के अनुसार जो गाणितिक विवेचन किया है, उससे गणितानुयोग को समझने में बड़ी सहायता मिलती है। ५५ इसके अंतर्गत जंबूद्विप, प्रज्ञप्ति, चंद्रपज्ञप्ति, तथा सूर्य प्रज्ञप्ति ये तीन उपांग सूत्र समाविष्ट है । ४) द्रव्यानु योग: इसमें जीव, अजीव आदि छह द्रव्यों और नौ तत्वों का कहीं विस्तार से, कहीं संक्षेप में वर्णन किया गया है। बत्तीस आगमों को इन चार अनुयोगों की दृष्टि से श्रेणिगत किया जाय तो चरण करणानुयोग के अंतर्गत सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्या प्रज्ञप्ति ये चार अंग सूत्र, जीवा -जीवाभिगम, प्रज्ञापना, ये दो उपांगसूत्र एवं नंदी और अनुयोगद्वार ये दो मूलसूत्र - ये कूल मिलाकर आठ सूत्र समाविष्ट हैं। ___ यह उपरोक्त वर्गीकरण विषय सादृश्य की दृष्टि से हुआ है, परंतु निश्चित रूप से यह कहा नहीं जा सकता कि अन्य आगमोमें अन्य अनुयोगों का वर्णन नहीं है। उदाहरणार्थ उत्तराध्ययन सूत्र में धर्म कथा के साथ - साथ दार्शनिक तथ्यों का भी विवेचन है। भगवती सूत्र तो अनेक विषयों का महासागर है। आचरांगमें भी अलग - अलग विषयों की चर्चा है। कुछ - कुछ आगमोंमें चारों अनुयोग का सम्मिश्रण देखा जाता है। इन चारों अनुयोगोंमें सम्यक्दर्शन, सम्यक् ज्ञान, तथा सम्यक् चरित्ररुप मोक्ष मार्ग का विविध स्थानों पर कहीं संक्षेपमें और कहीं विस्तार पूर्वक विषद विवेचन हुआ है। यह कार्य आगमोंकी व्यवस्था को सरल बनाने हेतु आर्यरक्षित द्वारा वि.स. १२२ के आसपास संपन्न हुआ।५६ अंग आगम परिचय - मानव के शरीर में भिन्न - भिन्न अंग- उपांग होते हैं। उन सबके समवाय को जीवन कहा जाता है। प्रत्येक अंग का अपना - अपना कार्य होता है। वैसे ही ज्ञानी पुरुषोने आगम पुरुष की कल्पना की है। जैन आगम साहित्यको अंग, उपांग, मूल, छेद आदि को भिन्न - भिन्न रुप में स्वीकार (२२)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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