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श्वेतांबर मंदिरमार्गी संप्रदाय में ४५ एवं ८४ की संख्या की भिन्न-भिन्न गणों में मान्यता है। अंग, उपांग, छेद, मूल के अतिरिक्त जो आगम माने जाते है उन्हे प्रकीर्णक कहा जाता है। आगम : अनुयोग -
आगमोंमें आये हुए विषय - अंग, उपांग, छेद, मूल, सिद्धांत, भेद, तत्व आदि की दृष्टि से है। आचार्य आर्य रक्षित सूरिने उनका चार अनुयोगोमें विभाजन किया है। १)चरकरणानुयोग २) धर्मकथानुयोग ३) गणितानुयोग ४) द्रव्यानुयोग कहलाते हैं।५३ ___अर्थ के साथ सूत्र की जो अनुकूल योजना की जाती है, उसका नाम अनुयोग है, अथवा सूत्र का अपने अभिध्येय में जो योग होता है, उसे अनुयोग जानना चाहिये ।५४ १) चरणकरणानुयोग
इसमें आत्माके उत्थान के मूल गुण, आचार, व्रत, उत्तर गुण, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चरित्र, संयम, वैयावृत्य, कषाय निग्रह, आहार- विशुद्धि, समिति, गुप्ति, भावना, इंद्रिय निग्रह, प्रतिलेखन, आदि का विवेचन है।
इसमें आचारांग तथा प्रश्नव्याकरण ये दो अंग, सूत्र, दशवकालिक यह एक मूल सूत्र, निशीथ, व्यवहार, बृहत्कल्प एवं दशाश्रुतस्कंध ये चार छेदसूत्र तथा आवश्यक इस प्रकार कुल आठ सूत्र आते हैं। २) धर्मकथानुयोग :
इसमें दान, शील, तप भावना, दया, क्षमा, आर्जव, मार्दव आदि धर्म के अंगोंका विशेषरुप से कथानकोके माध्यमसे विवेचन किया गया है। इसमें कथा, आख्यान, उपाख्यान द्वारा धार्मिक सिद्धांतों का विवेचन है।
इसके अंतर्गत ज्ञातृधर्मकथा, उपासक दशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरौपपातिक दशा तथा विपाक ये पांच अंग सूत्र, औपपातिक, राजप्रश्नीय, निरयावलीका, कल्पवतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, और वृष्णिदशा ये सात उपांगसूत्र एवं उत्तराध्ययन यह एक मूल सूत्र इस प्रकार कुल तेरह सूत्र इसमें आते हैं। ३) गणितानुयोग :
इसमें सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, भूगोल, खगोल आदि विषयों का तथा ग्रहगतियों आदि से संबंधित गणनाओं पर विचार किया गया है। इसमें गणित की प्रधानता है।
मुनिश्री महेंद्रकुमारजी द्वितीय ने 'विश्व प्रहेलिका' नामक पुस्तक में विज्ञान, पाश्चात्य