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________________ द्वितीय वाचना _ऐसा माना जाता है कि - भगवान महावीर के निर्वाण के बाद आठ सौ सत्ताईस और आठ सौ चालीस वर्ष के बीच आगमों को व्यवस्थित करनेका एक और प्रयास चला। क्योंकि उस समय भी पहले की तरह एक भयानक अकाल पड़ा था, जिससे भिक्षाके अभाव में अनेक साधु देवलोक हो गए। मथुरामें आर्य स्कंदील की प्रधानता में साधुओंका सम्मेलन हुआ। जिसमें आगमों का संकलन किया गया। इसी समय के आसपास सौराष्ट्र में वल्भी में भी आचार्य नागार्जुन सूरी के नेतृत्व में साधुओं का वैसा ही सम्मेलन हुआ। मथुरा और वल्भी में हुए इन दोनों सम्मेलनों को द्वितीय वाचना कहा जाता है। तृतीय वाचना धीरे धीरे लोगों की स्मरण शक्ति कम होने लगी। इसलिये भगवान महावीर के निर्वाण के नौ सौ अस्सी या नौ सौ तिरानब्बे (९८० या ९९३) वर्ष के बाद सौराष्ट्र के अंतर्गत वल्भीमें देव/ गणी क्षमा-श्रमण नामक आचार्य के नेतृत्व में सम्मेलन हुआ। आगमों का मिलान और संकलन किया गया। उस समय यह विचार आया कि धीरे धीरे मनुष्यों की स्मरण शक्ति कम होती जा रही है। इसलिये समस्त आगमों को कंठाग्र रखना कठीन होगा। तब आगमों को लिपिबद्ध या लेखन बद्ध करने का निर्णय लिया गया। तद्नुसार आगमों का लेखन हुआ। दृष्टिवाद तो पहलेसे ही लुप्त था। उसे विच्छिन्न घोषित किया गया। मूल और टीका में अपनेको 'वायणंतरे पूण अथवा नागार्जुनीयास्तु पठन्ति' ऐसा उल्लेख मिलता है।५१ आज हमें जो आगम प्राप्त है वे तीसरी वाचना में लिखे गये थे।५२ यह बड़े महत्त्वकी बात है कि - भगवान महावीर की वाणी आजभी हमें प्राप्त है। आगमों का विस्तार ग्यारह अंगों के अतिरिक्त जिनका उपर उल्लेख किया गया है। उपांग, मूल छेद के रूपमें अन्य ग्रंथ भी प्राप्त होते हैं। जो अंगोंसे संबंधित है। इस प्रकार अंग और अंग बाह्य के रूपमें जैन आगमोंका विस्तार हुआ। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि - ये आगम श्वेतांबर परंपरामें मान्य है। श्वेतांबरोंमें भी इनकी संख्याके विषय में एक समान मत नही हैं। कोई इनकी संख्या ८४, कोई इनकी संख्या पेंतालीस (४५) और कोई बत्तीस (३२) मानते है। (२०)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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