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४)प्रज्ञापना सूत्र ५) जंबूद्विप प्रज्ञाप्तिसूत्र ६) चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र ७)सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र ८) निरियावलिया सूत्र ९) कल्पवतंसिका सूत्र १०) पुष्पिका सूत्र ११) पुष्पचुलिका सूत्र १२) वृष्णिदशा सूत्र चार मूल सूत्र -
१) दशवैकालिक २) उत्तराध्ययन सूत्र ३) नंदीसूत्र ४) अनुयोगद्वार सूत्र चार छेद सूत्र
१) व्यवहार सूत्र २) बृहद्कल्पसूत्र १) आवश्यक सूत्र ३) निशीथ सूत्र ४) दशाश्रुत स्कंध ६५।२ ३२ 341214 2
प्राचीनकाल में शास्त्रों का ज्ञान कंठस्थ कर याद रखा जाता था। गुरू अपने शिष्यों को सीखाते थे। आगे चलकर वे शिष्य अपने शिष्यों को बताते थे। इस प्रकार वह परंपरा श्रवण या सुनने के आधार पर उत्तरोत्तर चलती रही । इसी कारण उस ज्ञान को श्रुत कहा जाता है।
आगमों का महत्त्व
जैन आगम साहित्य भारतीय साहित्य की अनमोल उपलब्धि है। अनमोल निधि है। ज्ञान, विज्ञान का अक्षय भंडार है। आगम शब्द 'आ' उपसर्ग ‘गम' धातु से बना है। 'आ' याने 'पूर्ण', और 'गम्' का अर्थ ‘गती' या प्राप्ति इस प्रकार होता है। आचारांग४१ सूत्र में आगम शब्द 'जानना' इस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। भगवती२ अनुयोगद्वारा४३ और स्थानांग४४ सूत्र में आगम शब्द ‘शास्त्र' इस अर्थ से प्रयुक्त हुआ है। मूर्धन्य महामनिषियोंने आगम शब्द की अनेक परिभाषा में लिखी है । स्याद्वादमञ्जरी की४५ टीका में आगम की परिभाषा इस प्रकार की है - 'आप्त वचन आगम है।' उपचार से आप्तवचनों से अर्थज्ञान होता है। वह आगम है ।४६ आचार्य मलयगिरीने लिखा है कि - जिससे पदार्थोंका परिपूर्णता के साथ मर्यादित ज्ञान होता है वही आगम है। ४७ जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण४८ इन्होंने आगम की परिभाषा देते हुए लिखा है कि - जिसके द्वारा सत्यशिक्षा मिलती है वह शास्त्र आगम या श्रुतज्ञान कहा जाता है।
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