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________________ के रूपमें स्थित है। दक्षिणी बिहार तब मगध कहलाता था। उस समय उत्तर भारतमें जन भाषा के रूप में प्राकृत का प्रचार था। मगध में जो प्राकृत बोली जाती थी; उसे मागधी कहा जाता था। उत्तर भारतके पश्चिमी अंचलमें जो भाषा बोली जाती थी; उसे शौरसेनी कहा जाता था। इन दोनों के बीच की भाषा अर्धमागधी थी। अर्धमागधी, मागधी और शौरसेनी दोनों का रूप लिये हुए थी। वह उस समय भिन्न भिन्न प्रदेशों में बोली जानेवाली प्राकृतों की संपर्क सूत्ररूप भाषा थी।३७ यही कारण है कि - भगवान महावीर ने अर्धमागधी भाषामें धर्म देशना दी।३८ धार्मिक जगतमें उस समय संस्कृत का महत्त्व था। उसीमें औरोके धर्मशास्त्र रचित थे। धर्म के क्षेत्र में संस्कृतका बड़ा महत्त्व था। किंतु साधारण जनता संस्कृत नहीं समझती थी। अत: भगवान महावीर ने धर्मोपदेश के माध्यम के रूपमें अर्धमागधी को अपनाया, क्यों कि उसे सभी लोग समझ सकते थे।३९ समझकर वे उसका लाभ उठा सकते थे। कहा गया है कि - बालकों, स्त्रियों, वृद्धों तथा अशिक्षितों - सभी लोगों के उपकार के लिए जो चारित्रमूलक धर्म को जानना चाहते थे; भगवानने प्राकृत भाषा में धर्मोपदेश देनेका अनुग्रह किया।४० भगवान महावीर द्वारा धर्मदेशना भगवान महावीर ने केवलज्ञान - सर्वज्ञत्व, प्राप्त करने के बाद धर्म देशना दी। वे अर्थरूप में उपदेश देते थे। उनके प्रमुख शिष्य गणधर शब्दरूप में उसका संकलन करते थे। भगवान महावीर का उपदेश जो गणधरों द्वारा शब्दरूप में संकलित किया गया वह ग्यारह अंगो या अंगसूत्रों के रूप में विभाजित हैं वे इस प्रकार है। ग्यारह अंग १)आचारांग २) सुत्रकृतांग ३) स्थानांग ४) समवायांग ५)भगवती ६) ज्ञाताधर्मकथा ७) उपासक दशा ८) अंतकृतदशा ९)अनुत्तरोपपातिक दशा १०) प्रश्न व्याकरण ११) विपाक सूत्र बारह उपांग १)औपापात्तिक सूत्र २) राज प्रश्नीय सूत्र ३) जीवाजीवाभिगमसूत्र (१७)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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