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उनके द्वारा प्रतिपादित विचारोंका संकलन शब्दरूपमें संग्रथन (गूंथना) उनके प्रमुख शिष्य गणधर करते हैं। यह ज्ञानका स्रोत - आगम इसलिए कहा जाता है कि - यह अनादि कालकी परंपरासे चला आ रहा है । वर्तमान युगमें भगवान महावीर की धर्मदेशना हमें आगमों के रूपमें प्राप्त है। जिसका गणधरोंने संकलन किया।
भगवान की धर्मदेशनाके संबंधमें आचार्य भद्रबाहू ने लिखा है - अर्हत- तीर्थंकर अर्थ भाषित करते है। सिद्धांतो या तत्वोंका आख्यान करते है। धर्मशासन या चतुर्विध धर्म संघ के हित-लाभ या कल्याणके लिए गणधर निपुणतापूर्वक - कुशलतापूर्वक सूत्ररूप में उनका ग्रंथन करते है - शब्दरूप में संकलन करते है। इस प्रकार सूत्रका प्रवर्तन - प्रसार होता है।३५
आचार्य श्री पूज्य देवेंद्रमुनिजी महाराज ने जैनागम साहित्य नामक विशाल ग्रंथमें आगम साहित्यका महत्त्व, आगमके पर्यायवाची शब्द, आगमकी परिभाषा इत्यादि विभिन्न पक्षोंको लेते हुए विद्वान आचार्यों के मन्तव्यों का विस्तार से विवेचन किया है, जिससे अध्येताओंको इस संबंध में यथेष्ट परिचय मिलता है।३६
वर्तमानकालमें हमें जो आगम प्राप्त है, ये भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित है। ऐसी जैन परंपरामें मान्यता है। यहाँ आगमों के संबंधमें संक्षेपमें चर्चा करना आवश्यक है।
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आगमों की भाषा
भाषा का जीवनमें बहुत महत्त्व है। वही अभिव्यक्ति का साधन है। यदि भाषा नही होती तो मनुष्य अपने भावों को कभी भी व्यक्त नहीं कर सकता था। भाषा ही वह कारण है जिससे आज हम अतीत के महापुरूषों और महान चिंतकों के विचारों से लाभान्वित हो रहे हैं। उन्होंने भाषाद्वारा अपने-अपने समय में जो भाव प्रगट किये वे आगमों में, शास्त्रों में और अन्य साहित्य द्वारा हमें प्राप्त है।
भाषा का संबंध मानव समुदाय या समाज के साथ जुड़ा हुआ है। भिन्न भिन्न देशों, प्रदेशों और जनपदों के लोग अपनी-अपनी भाषायें बोलते हैं। उनके द्वारा एक दूसरे के विचारोंको जानते हैं । भिन्न भिन्न देशों, प्रदेशों में भाषायें भिन्न-भिन्न होती है क्योंकि वहाँ रहनेवाले लोगों का संपर्क सूत्र लगभग वहीं तक होता है।
भगवान महावीर का जन्म लिच्छवी गणराज्यमें हुआ। आज वह भूभाग उत्तरी बिहारमें आता है। वैशाली उस समय लिच्छवी गणराज्य की राजधानी थी जो अब एक गांव