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________________ उत्सर्पिणी शब्दमें ‘उत्' उपसर्ग लगा है, वह उत्कर्ष या वृद्धि का सूचक है। अवसर्पिणी काल सभी दृष्टियोंसे क्रमश: हासोन्मुख होता है। उसके जो छह भेद बतलाये गये हैं। वे चक्र या पहिये के आरक की तरह है, इसलिये इन्हें आरक या आरा कहा जाता है। अवसर्पिणी काल के छह आरे - अवसर्पिणी कालका पहला आरक सुषम सुषमा कहा गया है। सुषमा शब्द सुंदरता, समृद्धि या सुकुमारता का द्योतक है। प्रथम आरक में यह दो बार आया है। इसका तात्पर्य यह है कि - इस कालमें जीवों की शक्ति, अवगाहना, आयु तथा समस्त पदार्थ अत्यंत उत्कर्षमय होते हैं । शास्त्रों में उनका विस्तारसे वर्णन किया गया है। यह आरक या काल उत्तरोत्तर हासोन्मुख होता है जो सुषमा या सुखमयता प्रथम आरक में होती है वह दूसरे आरक में नही होती। उसमें अपेक्षाकृत हीनता या न्यूनता आ जाती है। इस लिये दूसरे आरक के नाम में सुषम-सुषमा के बदले केवल सुषमा ही रह जाता है। केवल अत्यंत सुखमयता में परिवर्तित हो जाता है। उसमें अत्यंतता या अधिकता नही रहती। यह अपकर्ष या हास का क्रम उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। ___ तीसरे आरक में सुखमयता, दूसरे आरक की अपेक्षा कम हो जाती है। अर्थात उसमें सुख के साथ दुःख भी जुड़ जाता है। इसमें सुख अधिक होता है और दुःख कम होता है। काल के प्रभाव से धरती के रसकस कम हो जाते हैं। इस आरे में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म होता है। उन्होंने पुरुषोंको के लिये (७२) बहत्तर कलायें और स्त्रियों को चौषठ (६४) कलायें बताई है। वे स्वयं प्रवर्जित होकर साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध धर्म संघ की स्थापना करते हैं। वे मुनियों के लिये पांच महाव्रत और गृहस्थोके लिये बारह व्रतों का उपदेश देते हैं और वे आयु पूर्ण कर मोक्षगामी होते हैं। ___इस आरक को सुषम दुषम कहा जाता है। सुषम शब्द को दुषम से पहले प्रयुक्त किया जाना इसी भावका द्योतक है। चतुर्थ आरकमें दुःख का भाग अधिक होता है तथा सुखका भाग कम होता है । इसलिये इसे दु:षम-सुषमा कहा जाता है । दुःषम शब्दको सुषम से पूर्ण प्रयुक्त किया जाना इसीका सूचक है। इस आरकमें चोबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी मोक्ष प्राप्त करते है।
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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