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पर बल दिया गया है। उनमें और जैन धर्म के सिद्धांत में विशेष अंतर यह है कि जो त्याग
और साधना की गहराई इसमें है, वह अन्यत्र नहीं मिलती।२५ जैन धर्म पुरुषार्थ - सिद्धिसे सर्वार्थ सिद्धि की सफल तीर्थ - यात्रा है। वह सिद्ध पुरुषों अर्थात् शूरवीरोंका धर्म है।२६
कालचक्र
काल चक्र की तरह अनादि कालसे भ्रमणशील है। न उसका आदि है और न अंतही। कालचक्र बैलगाड़ी के आरों की भाँति नीचे से उपर और उपरसे नीचे घूमता रहता है ।२७
जंबूद्विप प्रज्ञाप्ति सूत्रमें गौतम गणधरने भगवान महावीर से प्रश्न किया - भगवान् ! जंबूद्विपके अंतर्गत भरतक्षेत्र में कितने प्रकारका काल कहा गया है ?
भगवान महावीर ने उत्तर दिया - “गौतम, अवसर्पिणी काल और उत्सर्पिणी काल के रूपमें वह दो प्रकार का कहा गया है।'' २८ गौतमने पुन: पूछा, “भगवन् ! अवसर्पिणी काल कितने प्रकार का है ?"
भगवान ने कहा - “गौतम ! अवसर्पिणी काल छह प्रकारका है।
१) सुषम-सुषम काल २) सुषमा काल ३) सुषम दुःषमा काल
४) दुषम- सुषमा काल ५) दुःषमा काल ६) दु:षम - दुःषमा काल." गौतम ने पुन: प्रश्न किया, “भगवन् ! उत्सर्पिणी काल कितने प्रकार का है ?" भगवानने उत्तर दिया - “गौतम ! उत्सर्पिणी काल छह प्रकार का है।"
१) दुषम - दु:षमा काल २) दु:षमा काल ३) दु:षम - सुषमा काल ४) सुषम-दुःषमा काल ५) सुषमा काल ६) सुषम -सुषमा काल । २९
समीक्षा :
सर्पण शब्द का अर्थ रेंगना, सरकना या चलना है। कालके दोनों भेदोके साथ यह शब्द जुड़ा हुआ है। काल सर्प की तरह रेंगता हुआ शनैः शनैः अपनी गतिसे चलता है। अवसर्पिणी शब्दमें जो ‘अव' उपसर्ग लगा है । वह अपकर्ष या हास का द्योतक है।
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