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चांडाल थे। वहाँ कहा गया है -
ये श्वपाक - पुत्र, चांडालकुलोत्पन्न हरिकेश मुनि है, जिनकी तपश्चर्या की विशेषता साक्षात् दिखाई देती है, जाति की कुछ भी विशेषता दिखाई नहीं देती। इनके तप की ऋद्धि अत्यंत प्रभावशालिनी है ।२३ ____ हरिकेश मुनि के उदाहरण से यह स्पष्ट है कि नीच कहे जाने वाली जातियों में भी उच्च कोटि के ज्ञानी एवं तपस्वी महापुरुष हुए हैं। वहाँ व्रत, त्याग, शील और आत्मोपासना, अहिंसा, करुणा, दया, सेवा और मैत्री भावना का महत्त्व है। ___ भगवान महावीर के समय में देश में हिंसा का मानो तांडव नृत्य हो रहा था। कुछ लोग तो हिंसा को धर्म का साधन मानते थे। जैसा पहले संकेत दिया है कि भगवान महावीर की क्रांति अहिंसक क्रांति थी। उन्होने अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म बतलाया। कहने के लिए तो अन्य धर्मों में भी “अहिंसा परमो धर्म:"२४ कहा जाता है किंतु उनके जीवन में अहिंसा का स्वीकार नहीं था। भगवान महावीर ने मन, वचन और कर्म द्वारा अहिंसक भाव अपनाने की प्रेरणा दी।
जैन धर्म की दृष्टि से सदाचार, सत्य, संतोष, इन्द्रिय दमन आत्मनिग्रह, राग-द्वेष लोभ आदि का नियंत्रण - इन गुणों का ही महत्त्व है। व्यक्ति विशेष का कोई महत्त्व नहीं है, चाहे वह लौकिक दृष्टि से कितना ही बड़ा वैभवशाली और सत्ताधीश क्यों न हो। वहाँ तो वे ही पूजनीय हैं, उन्हीं का सर्वाधिक महत्त्व है, जिनमें ये गुण हैं, वे ही आदर और सम्मान के पात्र होते हैं।
जैन धर्म का अंतिम लक्ष्य : शाश्वत शांति -
जैन धर्म के अनुसार धार्मिक कार्य - कलापों का अंतिम या मूल उद्देश्य शाश्वत शांति और मोक्ष की प्राप्ति करना है। अनंतज्ञान और अनंतदर्शन आत्मा के स्वाभाविक गुण है। संसार के प्राणियों में मनुष्य सर्वाधिक विकसित प्राणी है । आत्मा की विशुद्ध अवस्था का अनुभव करने की उसमें शक्ति है। तीर्थंकरों द्वारा निर्दिष्ट धार्मिक एवं नैतिक संस्कृति आत्मा को पूर्णत्व की आर ले जाने के लिए एक व्यावहारिक मार्ग की संरचना करती है।
यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारतीय धर्मो में मोक्ष प्राप्त करने की आवश्यकता
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