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१) दुःख है २) दु:ख का कारण है ३) दु:ख का निरोध किया जा सकता है ४) दु:ख के निरोध का मार्ग है। १३
बुद्ध ने मध्यम मार्ग को स्वीकार किया। अत्यंत त्याग और अत्यंत भोग के बीच के मार्ग को लेकर उन्होंने धर्म के सिद्धांतों का प्रसार किया।
बौद्ध धर्म के सर्वाधिक मान्य शास्त्र पिटक कहलाते हैं। वे तीन है - १) विनय पिटक, २) सुत्त पिटक तथा ३) अभिधम्म पिटक । उनमें भिक्षुओं के आचार के नियम, मुख्य सिद्धांत एवं तत्वों का विवेचन है।१४
बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान - मुख्य दो संप्रदाय हैं। हीनयान में ऐसा माना जाता है कि शुभ और अशुभ दोनों प्रकार की वासनाएँ हैं। निर्वाण ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। हीनयानी साधक स्वकल्याण पर जोर देते हैं।
महायान संप्रदाय में अशुभ वासनाओं को छोड़कर शुभ वासनाओं के विकास पर जोर दिया है। वे करुणा को बहुत महत्त्व देते हैं।
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जैन धर्म
__ जैन धर्म का विश्व के धर्मों में महत्त्वपूर्ण स्थान है । वह आत्म- कल्याण और प्राणीमात्र के श्रेयस के सिद्धांतों पर आधारित हैं। जैन धर्म अनादि अनंत है। जिनों द्वारा उपदिष्ट होने के कारण यह जैन कहलाता है। “जयति राग द्वेषौ इति जिन:” जो राग एवं द्वेष को जीत लेते हैं, वे जिन कहलाते है। वे सर्वज्ञ होते हैं, क्योंकि उनके ज्ञान के आवरण नष्ट हो जाते हैं। वैसे वीतराग महापुरुष विभिन्न कालोंमें धर्म का प्रतिबोध देते हैं, उन्हें तीर्थंकर भी कहा जाता है । यहाँ तीर्थ शब्द का प्रयोग बाह्य तीर्थ स्थानों के लिए नहीं है । श्रमण, श्रमणी, श्रमणोपासक - श्रमणोपासिका रुप चतुर्विध धर्म संघ यहाँ तीर्थ शब्द से अभिहित है। वे सर्वज्ञ प्रभु उसकी स्थापना करते हैं। इसलिए तीर्थकर कहलाते हैं, 'तीर्यतेऽनेनेति तीर्थम्' ।
जिसके द्वारा तीर्थ किया जाता है या पार किया जाता है, वह तीर्थ है।१५ धर्म - तीर्थ संसार - सागर को पार करने का, जन्म- मरण रुप आवागमन से छूटने का साधन या माध्यम
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इतिहास एवं परम्परा