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________________ अतएव मुनि (साधु) मद न कर समता में रहे।१० चक्रवर्ती दंडित होने पर अपने से पूर्वदीक्षित अनुचर को भी नमस्कार करने में संकोच न करें, किंतु समता का आचरण करें। प्रज्ञासंपन्न मुनि क्रोध आदि कषायों पर विजय प्राप्तकर समता धर्मका निरूपण करें ।।१।। __यों समण ‘श्रमण' शब्द श्रम, शम तथा सम के साथ संपृक्त तीन प्रकार के अर्थों से जुड़ जाता है। __ श्रम का अर्थ उद्यम तथा व्यवसाय है, जो एक श्रमण के संयम, सदाचरण तथा तपोमय जीवन द्योतक है। एक श्रमण अपनी साधना में सतत् प्रयत्नशील, पराक्रमशील रहता है। ज्ञान के साथ क्रियाशीलता उसके जीवन की विशेषता है। श्रम में क्रियाशीलता सन्निहित है। शम, निर्वेद, वैराग्य एवं त्याग का बोधक है। त्याग ही एक श्रमण के जीवन का अलंकरण है। सम का अभिप्राय; प्राणिमात्र के प्रति समत्वभाव या समता है। अहिंसा एवं करूणा जीवन में तभी फलित हो सकती है, जब व्यक्ति के अंत:करण में 'आत्मवत् सर्वभुतेषु' का भाव हो । विश्वमैत्री का यही मूलमंत्र है। श्रमण के विश्व वात्सल्यमय जीवन का समत्व में संसूचन है। श्रमण आत्मकल्याण के साथ-साथ जन-जन के कल्याण में निरत रहता है। श्रमण शब्द की यह सामान्य रूप से शाब्दिक व्याख्या है। बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों परंपराएँ श्रमण संस्कृति में समाविष्ट है। श्रमण संस्कृति कर्मवाद पर आधारित है। जो पवित्र और श्रेष्ठ कर्म करता है वही उच्च है। जो हिंसा, निर्दयता, लोभ आदि अशुभ कर्मो से संलग्न रहता है, वह नीच है। बौद्ध धर्म महात्मा बुद्ध ने भी ऐसा कहा है कि - “जो व्रतयुक्त है, सत्यभाषी है, इच्छा और लोभ से रहित है, जो छोटे बड़े पापों का शमन करता है वह श्रमण है।"१२ बौद्ध धर्म संसार के प्रमुख धर्मो में है। इसका भारत के बाहर के देशों में भी प्रचार है। भगवान बुद्ध ने इसका उपदेश दिया, जो भगवान महावीर के समकालीन थे। बौद्ध धर्म में ऐसा माना जाता है कि उनसे पूर्व भी अनेक बुद्ध हुए हैं। इतिहासकार प्राय: भगवान बुद्ध को ही बौद्ध धर्म का प्रवर्तक मानते हैं। बौद्ध धर्म में चार आर्य सत्य स्वीकार किये गए हैं
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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