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एवं स्वच्छ बना देती है। उसकी चरम परिणति यह होती है कि - उपासक उपास्य का पद पा लेता है । वह जन-जन का आराध्य बन जाता है। णमोक्कार महामंत्र का यह अनुपम वैशिष्ट्य है।
निष्कर्ष
प्रस्तुत शीर्षक के अंतर्गत विविध पक्षों को लेते हुए णमोक्कार महामंत्र की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है। यहाँ आगम, योग, मंत्र, कर्म -साहित्य आगमगत अनुयोग, आध्यात्मिक दृष्टि, आत्मकल्याण, आत्माभ्युदय संघ-हित, व्यक्ति-उत्थान, सामाजिक - श्रेयस्, चराचर समस्त विश्व के कल्याण, दुःख-निवृत्ति, विघ्न-नाश, सुख प्राप्ति अनुकूलता इत्यादि विविध दृष्टिकोनों को लेते हुए विश्लेषण किया गया है। णमोक्कार महामंत्र की ऐसी गरिमा है कि वह इन सबकी कसौटी पर खरा उतरता है।
इन पक्षों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते है। एक वह भाव है - जिसका संबंध आत्मा के परम कल्याण या चरम श्रेयस् के साथ जुड़ा हुआ है। वह सर्वथा आध्यात्मिक है । वहाँ भौतिक अभिप्साओं और उपलब्धियों का कोई स्थान नहीं है। वह तो संवर निर्जरामय साधना के साथ संलग्न है। ___ कार्मिक आवरणों के निरोधमूलक संवर के लिए जिन प्रबल आत्म-परिणामों की आवश्यकता होती है, णमोक्कार महामंत्र के जप, ध्यान, तथा अभ्यासद्वारा वह उपलब्ध होती है। पुन:पुन: संसार सागमे में परिभ्रमण करनेवाला कर्म प्रवाह अवरूद्ध हो जाता है, जो आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। साथ ही साथ महामंत्र की आराधना से एक ऐसा आंतरिक उर्जा का जागरण होता है, जिससे साधक को तपश्चरण में आनंदानुभूति होने लगती है।
चिरकाल से लिप्त कर्म-मल धुलता जाता है - यह दूसरी आध्यात्मिक उपलब्धि है। जिसका उल्लेख आगमों में, आगमगत अनुयोगों में, मंत्र शास्त्रों में, योगशास्त्र में तथा कर्मग्रन्थों मे हुआ है। इन दोनों आध्यात्मिक उपलब्धियों से वह परमोत्कृष्ट प्रस्फुटित होता है, जिसके लिये अनंतकाल से जीव व्याकुल है।
दार्शनिक भाषा मे जीव को सिद्धत्व, मुक्तत्व प्राप्त हो जाता है, जिससे बढ़कर इस त्रैलोक्य में कोई भी उपलब्धि नहीं है। णमोक्कार मंत्र का यह महत्तम लाभ है।
दूसरा भाग ऐहिक या लौकिक है, जिसका संबंध सांसारीक उन्नति, समृद्धि-संपत्ति,
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