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सुख इत्यादि के साथ संलग्न है । इन सभी की प्राप्ति के हेतु शुभ कर्म है । यद्यपि णमोक्का महामंत्र का परम लक्ष्य कर्मावरणों को तोड़ना है, पर साधना काल में ज्यों-ज्यों रागादि भाव हल्के पड़ते जाते हैं- अप्रशस्त से प्रशस्त बनते जाते हैं, त्यों-त्यों पुण्य प्रकृतियों का बंध होता जाता है । यद्यपि साधक का यह लक्ष्य नहीं होता, पर वे प्रासंगिक रूप में बंधती है, जिनके फलस्वरूप सांसारिक अनुकूलताएँ प्राप्त होती है ।
सांसारिक सुख, वैभव आदि की प्राप्ति के दो प्रकार के परिणाम होते हैं। मिथ्या दृष्टि पुरुष उन्हें प्राप्त कर नितांत भोगोन्मुख जीवन अपनाते हैं । सम्यग् - दृष्टि पुरुष उनमें विमूढ़ नहीं बनते। वे उनका सात्त्विक कार्यो में उपयोग करते है । यदि सद्बुद्धि और सदुद्देश्य हो तो संपत्ति विकार का हेतु नहीं बनती। वह सांसारिक सुविधा देते हुए जीवन को सात्त्विक बनाने में सहायता करती है।
मोकार मंत्र का आराधक उसी कोटि का व्यक्ति होता है । भौतिक उपलब्धियाँ भी उसको आध्यात्मिक दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। इस प्रकार वह आगे बढ़ता - बढ़ता आध्यात्मिक मार्ग स्वीकार कर लेता है, तथा मोक्षमार्ग का पथिक बन जाता है । यह णमोक्कार मंत्र का अद्भुत प्रभाव है।
णमोक्कार मंत्र और तद्नुस्यूत साधना पथ का अंतिम लक्ष्य सिद्धावस्था है । सिद्ध प्रणम्य और अभिवंद्य है। वह प्रणम्यता अन्त:स्फुर्ति के अमृत कणों से संसिक्त है। सिद्धावस्था प्राप्त करने पूर्व साधू पदपर विचार होगा क्यों कि साधू के आचार, विचार, क्रिया को जानना आवश्यक है इसलिए चतुर्थ अध्याय में विस्तृत वर्णन आएगा ।
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