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इसी प्रकार उपाध्याय भगवंत के जीवन व्यापी विनय का प्रभाव पड़ता है। जिससे उनको नमन करनेवालें, उनके सान्निध्य में आनेवाले लोगों का मान या अहंकार विनष्ट हो जाता है।
“णमो आयरियाणं” पद से मायाचार दूर होता है। अपने आप से प्राप्त शक्तियों को छिपाना, उनका सदुपयोग न करना, उनके कल्याण के कार्यों में न लगाना मायाचार कहलाता है। जो आचार्योचित भावों में परिणत हैं, वे धर्माचार्य अपनी शक्ति को जरा भी छिपाकर नहीं रखते। वे सदाचार की क्रियाओं में सदा संलग्न रहते हैं। आत्मा शक्ति या उर्जा का वे अध्यात्म विकास में उपयोग करते हैं । आचार्य पद को नमस्कार करने से नमस्कर्ता के भावों के अनुरूप उसमें शुभक्रियोपयोगी पराक्रम का उद्भाव होता हैं, उसका मायाचारया माया नामक दोष मिट जाता है। जब माया मिट जाती है, तो ऋजुता - सरलता नामक गुण प्रकट होता है।
“सोई उज्जुय भूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिठ्ठई ।" यह आगमों में इसका साक्ष्य हैं। इसमें बताया गया है कि जो ऋजु होता हैं, उसके जीवन में शुद्धता आती है। शुद्ध व्यक्ति में धर्म टिकता हैं । ३५०
“णमो सिद्धाणं” पद सांसारिक लोभ को मिटाने का अनन्य हेतु है। सिद्धपरमात्मा अनंत ऋद्धि से संपन्न होते हैं। उन्हें जरा भी सांसारिक लोभ नहीं होता। सांसारिक जीवों को पदार्थों का लोभ तब तक रहता हैं, जब तक आत्मा की अनंत ऋद्धि का वैभव का उन्हें दर्शन नहीं होता। उनको नमस्कार करने से, उनका स्मरण करने से साधक को आत्मा की अनंत ऋद्धि का दर्शन होता है, बोध होता है। उसके मन में संतोष वृत्ति जागृत होती है।३५१
- परमेष्ठी भगवंतो के प्रति की जानेवाली नमस्कार क्रिया को पुण्यरूप शरीर को जन्म देनेवाली माता की उपमा दी गई है। जिस प्रकार माता बाह्य शरीर को उत्पन्न करती है, उसी प्रकार नमस्कार रूपी माता, पुण्यरूप शरीर को समुत्पन्न करती है । नमस्कार क्रिया से अनेकानेक शुभकर्मों का संचय होता है। बाह्य शरीर में भी स्वस्थता, दीर्घ आयुष्य, सुंदरता, दोषरहितता औदार्यता सहृदयता सौम्यता आदि गुण आंतरिक पुण्यरूप शरीर के बिना व्यक्त नहीं होते यह पुण्य का कारण हैं। शारीरिक, स्वस्थता, सुंदरता, बुद्धिमत्ता आदि कार्य हैं। एक ही समय में उत्पन्न होनेवाले दो बच्चों मे स्वभाव, स्वास्थ्य, शक्ति, बुद्धि एवं नीति
आदि में अंतर पाया जाता है। इसका वास्तविक कारण पुण्यरूप शरीर का अंतर है। जिस मनुष्य का पुण्यरूप आभ्यंतरिक शरीर परिपृष्ट तथा प्रबल होता है, उसे उत्तम श्रेष्ठ पदार्थ और अनुकूल, सुखद स्थितियाँ स्वयं प्राप्त हो जाती है।
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