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को अभय प्रदान करते हैं । प्राणातिपात या हिंसा से पृथक् रहते है, सदा समग्र संसार के प्राणियों की सुखशांति की कामना करते हैं । प्रत्युपकार या प्रत्याशा के बिना वे उस दिशा में प्रयत्नशील रहते हैं । वैयक्तिक दृष्टि से भी यह महामंत्र आराधक के लिए उन्नतिप्रद है। साधक बाह्य साधनसामग्री के अभाव में भी इस मंत्र की प्रेरणा से मानसिक बल प्राप्त करता है। वह इसके द्वारा उन्नति के सर्वोत्कृष्ट शिखर पर पहुँचने में सक्षम होता है ।
अनिष्ट निवारण नवकार मंत्र
अनिष्ट निवारण या विघ्नों की निवृत्ति की दृष्टि से णमोक्कार मंत्र का स्मरण अशुभ कर्मों को रोकता है। शुभ कर्मों के विपाकोदय को अनुकूल बनाता है। उसके परिणामस्वरूप प्राप्त सुखों को उपस्थापित करता है । इस महामंत्र के प्रभाव से समग्र अनिष्ट स्थितियाँ, विपरीतताएँ - इष्ट स्थितियों में, अनुकूलताओं में परिणत हो जाती है। जंगल में मंगल हो जाता है । भयंकर सर्प पुष्पमालाओं में परिवर्तित हो जाते हैं। अग्निका सिंहासन हो जाता है। अग्निका पानी हो जाता है। विष का अमृत हो जाता है । ३४५
ऐहिक इष्ट-सिद्धि की दृष्टि से णमोक्कार मंत्र की आराधना के फलस्वरूप दैहिक शक्ति, बुद्धि, मनोबल, आर्थिक वैभव, राजसत्ता, लौकिक संपत्ति, ऐश्वर्य, प्रभाव ये सब प्राप्त होते है, क्योंकि यह महामंत्र, चित्त की मलिनता और दूषितता को दूर करता है एवं मानसिक निर्मलता और उज्ज्वलता को प्रगट करता है। जब चित्त में निर्मलता आ जाती है, तो पुण्य - प्रभाव वश सभी प्रकार की उन्नति होती है। ३४६
नवकार मंत्र की विलक्षण शक्ति
. पंचपरमेष्ठि को नमन करने से विनय, सदाचार, परोपकार, सेवा आदि लोकोत्तर गुणों प्रतिमन में आकर्षण उत्पन्न होता है और भी अनेक लाभ होते है । वास्तव में नवकार मंत्र में एक विलक्षण शक्ति है। जीवन में शक्ति का बहुत महत्त्व है । शक्तिद्वारा ही आत्म विकार के विघ्नों को रोका जा सकता है। मोह जीव का वास्तविक शत्रु है जो अनादिकाल से उसके पीछे लगा है। अष्टविध कर्मों में मोहनीय कर्म मुख्य है । उसको जीतना बहुत दुष्कर है। मोहनीय कर्म के दो प्रकार हैं । १) दर्शन मोहनीय चारित्र मोहनीय, मोहनीय कर्म को लेने से अन्य कर्मों की शक्ति जर्जर तथा क्षीण हो जाती है। परमेष्ठी नमस्कार से, उनके स्मरण से मोहनीय कर्म का मूलोच्छेद हो जाता है, मोह का नाश हो जाता है। जब मोह का नाश हो जाता है, तो अन्य कर्म अवश्य ही नष्ट हो जाते हैं। नवकार का दूसरा पद 'सव्व
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