SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिलने पर अपराधी बिना सजा के छूट जाता है लेकिन कर्मवाद के कानून में किसी को मुक्ति नहीं मिलती है और नवकार मंत्र के स्मरण या जप से सभी सावध या पापपूर्ण कर्म छूट जाता हैं। और साधक उत्तरोत्तर कर्मक्षय करता हुआ, अरिहंतपद तक भी पहुँच सकता है। समग्र कर्मक्षय करके सिद्ध बन सकता है। इस प्रकार नमस्कार मंत्र एक ऐसे न्यायतंत्र का सूचक है कि - इसका निर्णय त्रिकालाबाधित है। भगवान का साम्राज्य दयातंत्र Law of Mercy सर्वोपरी है।३४२ वैधानिक दृष्टि से नवकार मंत्र : संसारमें जितने भी संस्थान, प्रतिष्ठान, प्रजातंत्र, गणतंत्र आदि है। इन सब के अपने अपने विधान है। विधान के बिना इन संस्थाओं का कार्य सुचारु रुप से नहीं चल सकता है। नमस्कार मंत्र भी एक आध्यात्मिक विधान का सूचक है। अन्य विधानोंमें समय समय पर परिवर्तन करना पड़ता है। इसकी तुलनामें नमस्कार मंत्र का विधान सर्वश्रेष्ठ और सर्वोपरि है। आजतक नवकार मंत्र में किसी अक्षर मात्र का भी परिवर्तन नहीं हुआ है और नहीं होगा। अनंत तीर्थंकर भगवान, गणधर देव तथा अनंत महापुरुष हो गये है किन्तु नमस्कार मंत्र का विधान अति विशुद्ध होने के कारण आज तक अपरिवर्तित है। इससे यह सिद्ध होता है कि - नमस्कार मंत्र शाश्वत सत्य है और यह परमानंद की प्राप्तिका अनन्य साधन है। नमस्कार मंत्र का विधान संसार के लोगों को आव्हान करता है कि- आप सब इसका अनुकरण करें और परमशांति को प्राप्त करें। इतना ही नहीं नवकार मंत्र को सांसारिक विधान के साथ - साथ जोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से ही सांसारिक विधान में पवित्रता आयेगी। नमस्कार मंत्र धार्मिक विधान का वह दस्तावेज है, जो किसी भी न्यायालय द्वारा असिद्ध साबित नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें वीतराग प्रभु की सर्वव्यापीनी, सर्व ग्राहीनी, अनंत ज्ञानात्मक शक्ति जुड़ी हुई है।३४३ नवकार मंत्र का स्मरण उभयकाल करना चाहिए। यह सर्व मत्रोंमें सर्वोत्तम मंत्र है।३४४ चराचर विश्वकी दृष्टि से नवकार मंत्र चराचर या जंगमात्मक विश्व की दृष्टि से भी णमोकार मंत्र के आराधन का एक विलक्षण प्रभाव है। जो इस महामंत्र की आराधना करते है, वे अपनी ओर से समस्त प्राणियों (२८५)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy