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________________ श्री नवकार महामंत्र गिननेवाले के पाप नष्ट होते हैं। श्री नवकार महामंत्र सुननेवाले के पाप नष्ट होते है। श्री नवकार महामंत्र सीखनेवाले के पाप नष्ट होते हैं।३३५ चतुर्विध संघ की दृष्टि से नवकार मंत्र - नमस्कार मंत्र सबको एक श्रृंखलामें बांधनेवाला और सबको समान स्तर पर पहुँचानेवाला है। नवकार मंत्र का किसी भी आराधक हमारे लिए समान है। इसे हम साधर्मिक कहते हैं । जैन और नवकार मंत्र एक दूसरे के पर्याय बने हैं। नवकार मंत्र के आराधक न तो दिगंबर है न तो श्वेतांबर, ये सभी वीतराग परमात्मा के आराधक है। चरम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के शासन में श्रावक और श्राविका पद पर स्थित होकर चतुर्विध संघ के आधार स्तंभ बन जाते हैं। समष्टि गत उन्नति की दृष्टि से एक दूसरे को एक समान आदर्श के उपासक एवं पूजक बनाकर सत्श्रद्धा और सत्चारित्रके पथ पर अडिग खड़े रहने का बल प्रदान करता है। और जैन धर्म की आराधनामें जागृति के साथ पुरुषार्थ करने की श्रद्धा प्राप्त होती है। वैयक्तिक उन्नति की दृष्टि से नवकार मंत्र - बाह्य साधन सामग्री के अभावमें भी साधक केवल मानसिक बल से सर्वोच्च उन्नति के शिखर पर पहुँच सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि - नवकार मंत्र की आराधना के लिए किसी भी प्रकार की बाह्य सामग्री की कोई आवश्यकता नहीं है। श्रद्धापूर्ण मन ही नवकार मंत्र का उत्तम फल प्राप्त कराने की क्षमता रखता है। व्यक्ति और समष्टि, व्यक्ति और समाज, व्यक्ति और विश्व का यह कल्याण मंत्र बेजोड़ मंत्र है। इष्ट सिद्धि की दृष्टि से नवकार मंत्र - ____ शारीरिक बल, मानसिक बुद्धि, आर्थिक वैभव, राजकीय सत्ता, ऐहिक संपत्ति तथा दूसरे अनेक प्रकार के ऐश्वर्य, प्रभाव और उन्नति को करानेवाला नवकार है। क्योंकि यह मंत्र चित्त की मलीनता और दोषों को दूर कर निर्मलता और उज्ज्वलता प्रगट करता है। सर्व उन्नति का बीज चित्त की निर्मलता है और यह निर्मलता नवकार से सहज ही सिद्ध हो जाती है, क्योंकि नमस्कार महामंत्र अनादि है, अतित में था, वर्तमान में है और भविष्यमें भी अवश्य रहेगा। इसकी न आदि है और न अंत । ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से नमस्कार मंत्र - ज्योतिष विद्या द्वारा प्राप्त ज्ञान के आधार पर ज्योतिषी, जो घोषित करते हैं, वह तो (२८२)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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