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________________ सागरोपम पापका नाश होता है। एक नवकार गिनने से दो लाख ६५ हजार पल्योपम देव आयुष्य का बंध होता है। १००८ नवकार गिनने से २ करोड, ६८ लाख, २० हजार पल्योपम देव आयुष्य का बंध होता है। भाव से सिर्फ १ नवकार गिनने से - साड़े १५ बार ७ वीं नरक के दु:ख टलते है। नवकार के १ अक्षर पर १००८ विद्यादेवीओंका वास है। नवकार के ६८ अक्षर पर ६८,५४४ विद्यादेवीओंका वास है। विधिपूर्वक १ लाख नवकार गिनननेवाली आत्मा निश्चय से परमात्मा बनती है। भाव से नवलाख नवकार गिननेवाली आत्मा कभी नरक तिर्थंच जैसे दुर्गति में नहीं जाती । (९ लाख गणतां - नरक निवारे.. ) ८ करोड, ८ लाख, ८ हजार, ८०८ नवकार गिननेवाली आत्मा नि:संदेह तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन करती अ-रि-हं-त-सि-द्ध-आ-चा-र्य-उ-पा-ध्या-य-सा-धू-इन १६ अक्षरों का २०० बार जाप करने से एक उपवास का फल मिलता है। अ-रि-ह-सि-द्ध : इस ६ अक्षरों का मंत्र तीनसौ बार अ-रि-हं-त इन चार अक्षरों का मंत्र चार सौ बार और अरिहंत के सिर्फ अ का पाँच सौ बार जो जाप करता है उसे १ उपवास का फल मिलता है। प्रात:काल कमल के ध्यान से १०८ नवकार का जाप करने से भी १ उपवास का फल मिलता है।३३२ ____ गणित शास्त्र की दृष्टि से यह नमस्कार मंत्र पर चिंतन किया जाय तो उसकी महत्ता और पूर्णता सिद्ध होती है । गणित शास्त्र मुख्यत: गणन और विभाजन के सिद्धांत पर आधारित है। (Law of Multification and Law of Division) इनके अतिरिक्त गणित में जोड़ और बाकी दो पक्ष और है। नमस्कार मंत्र के स्मरणमात्र से गणित शास्त्र के चारों सिद्धांत उत्कृष्ट प्रकार से प्रतित होते है । पुण्य का जोड, पाप की बाकी, कर्म का भागाकार और धर्म का गुणाकार हो जाता है।३३३ जैन शास्त्रानुसार नवकार मंत्र के स्मरणमात्र से धर्म का गुणाकार और कर्म का भागाकर किया जाता है। नमो अहिताणं कहते ही भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्कालमें जगत के परम उद्धारक सभी तीर्थंकरों को नमस्कार हो जाता है। Law of Multiplication and Law of Division अपनी वृत्तियाँ को वापस खींच कर आत्मस्वरुपमें स्थीर रहना, यह सब साधना का रहस्य है। आत्मस्वरुपका अनुभव करना और स्वरुप को प्राप्त करना यही विश्व का सर्वोच्च गणित है। यह गणित का जिन्होंने अनुभव किया है वे Higher Mathematics को निष्णात पारंगत है।३३४ इससे धर्म का गुणाकार और कर्म का भागाकार हो जाता है। सभी संपत्तियों का सर्जन और विपत्तियों का विसर्जन हो जाता है। नवकार मंत्र के पाँचों पदों के जपसे उत्तरोत्तर सुकृत वृद्धि होती है। तथा दुष्कृत का नाश होता है। (२८१)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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