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विशिष्ट स्थान दर्शाता है। नवकार मंत्रमें आठ संपदाओं वर्णित की गई है । इन आठ संपदाओंसे अनंत संपदाओं का लाभ होता है - साधक को संपदाओंकी प्राप्ति होती है । नवकार मंत्र से अणिमा आदि अष्ट सिद्धियोंकी प्राप्ति होती है । साधक को यदि एक भी सिद्धि की प्राप्ति हो जाए तो भी वह परम कल्याणकारी साबित होगा और यदि आठों सिद्धियाँ प्राप्त हो जाए, तो पूछना ही क्या ? इसका वर्णन करना अशक्य हो जाता है । नवकार मंत्र के अडसठ अक्षर तीर्थों का प्रतीक है और प्रत्येक अक्षर पर अनेक विद्याओंका वास है, निवास है। नमस्कार मंत्र के आरंभ के पाँच पदों के बारेमें बहुत ही गौरवपूर्ण बात बताई गई है। तीर्थंकरोने दर्शाया है कि - प्रारंभ के पदों को पंचतीर्थ कहा है - श्री अरिहंत का आद्य अक्षर अ अष्टापद तीर्थ का सूचक है श्री सिद्ध का आद्य सि सिद्धाचलजी का सूचक है , आचार्य के आद्य अक्षर आ आबूजी का सूचक है, उपाध्यायजी का आद्य अक्षर उ उज्जयंत अर्थात गिरनारजी का सूचक है और साधु के आद्य अक्षर स सम्मेत शिखरजी का
सूचक है।३२८
द्रव्यानुयोग की दृष्टि से नवकार मंत्र - ___ द्रव्यानुयोग की दृष्टि से नमस्कार महामंत्र के प्रथम दो पद आत्मा के विशुद्ध स्वरुपको प्रगट करते है। साधक के लिए यह साध्य है और इस साध्य को प्राप्त करने का पुरुषार्थ ही ध्येय बनना चाहिए। बादके तीनों पद साधक अवस्था के शुद्ध प्रतिक रुप है। जब तक वह अरिहंत, या सिद्ध नहीं बन सकता है। द्रव्य और भाव से महामंत्र नवकार के साथ संबंध जोडे बिना अपना भाव भ्रमण रुकनेवाला नहीं है। साध्य की प्राप्ति के लिए द्रव्य से भी प्रयास करना अनिवार्य है। ३२९
श्रीमद् राजचंद्रजीने चार अनुयोगोंका आध्यात्मिक उपयोग बताते हुए लिखा है - जो मन शंकायुक्त होगा तो द्रव्यानुयोग का चिंतन करना, प्रमादमें होतो, चरणकरनानु योग को चिंतन करना, कषाययुक्त हो तो धर्मकथानुयोग का और जड़ता, मंदता हो तो गणितानुयोग का विचार करना चाहिए ।३३०
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गणितशास्त्र की दृष्टि से नवकार मंत्र
मंगलमय श्री नवकार मंत्र के एक अक्षर के जप करने से सात सागरोपम का नाश होता है एक पद के जप करने से पचास सागरोपम पाप का नाश होता है। संपूर्ण नवकार मंत्र के जाप करने से पंचसो सागरोपम पाप का नाश होता है । १०८ नवकार गिनने से ५४००
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