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________________ निर्जराद्वारा क्षय कर निर्वाण लाभ किया जा सकता है । णमोकार महामंत्र और कर्म साहित्य का निकटतम संबंध है। आत्मा के साथ अनादिकालीन कर्म प्रवाह के कारण सूक्ष्म शरीर रहता है। जिससे यह आत्मा शरीर में आबद्ध दिखाई पड़ता है। तीव्र कषाय होने पर कर्म परमाणु अधीक समय तक आत्मा के साथ रहते हैं और मंद ही फल देते हैं। आचार्य कुंदकुंद स्वामीने बताया है कि - “णमोकार मंत्रोक्त पंचमेष्टियों की विशुद्ध आत्माओंका ध्यान या चिंतन आत्मासे चिपटा राग कम होता है। कर्मोंके बीजभूत राग-द्वेष को नवकार मंत्र की साधना द्वारा नष्ट किया जा सकता है। जिस प्रकार बीज को जला देने के बाद वृक्ष का उत्पन्न होना फल देना नष्ट हो जाता है इसी प्रकार णमोकार मंत्र की आराधना से कर्म - जाल नष्ट हो जाता है।"३२६ चरणकरणानु योग की दृष्टि से नवकार मंत्र - चरणकरणानुयोग के अनुसार इसका संबंध आचार के साथ जुड़ा हुआ है। श्रमण और श्रमणोपासक की समाचारी या व्रत परंपरा के परिपालन में अनुकूल या विघ्न निवारण हेतु णमोकार मंत्र का पुन: पुन: उच्चारण या जप अत्यंत आवश्यक है और उपयोगी है। हृदय में भक्तिका संचार होता है। अरिहंत और सिद्ध के प्रति समर्पण भाव का उदय होता है और बाद में श्रद्धा का दृढ़ आरोहण होता है और अंतमें समभाव से चरण करण की सभी प्रवृत्ति साधक कर सकता है।३२७ धर्मकथानु योग की दृष्टि से नवकार मंत्र - धर्म कथानुयोग की अपेक्षा से, जिसमें धार्मिक जीवन को उन्नत बनानेवाले कथानक होते हैं, उसमें णमोक्कार महामंत्र का बड़ा महत्त्व है। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा साधुकुंद के जीवन चरित्र- संबंधी अद्भुत कथाएँ इसके साथ संलग्न हैं। जिन्होने णमोक्कार की आराधना द्वारा समुन्नती की, उन जीवों की कथाएँ भी पाठकों को सत्मोत्थान का मार्ग प्रदर्शित करती है। ये सात्त्विकता, धर्मानुरागिता आदि गुणों को पोषण देती हैं । श्रमण, श्रमणी, श्रमणोपासक, श्रमणोपासिक चतुर्विध संघ की दृष्टि से णमोक्कार मंत्र सब को एक आध्यात्मिक श्रृंखला में जोड़ता है , तथा सभी को एक ही स्तर पर पहुँचाने का, आत्मा का शुद्ध स्वरुप स्वायत्त कराने का माध्यम है। गणितानु योग की दृष्टि से नवकार मंत्र - ___ गणितानु योग की दृष्टि से नमस्कार महामंत्र की संख्या नौ है और नौ की संख्या गणित शास्त्र की दृष्टि से और अन्य संख्याओंकी तुलनामें अखंडितता और अभंगता का (२७९)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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