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________________ इहलौकिक और पारलौकिक दृष्टि से नवकार मंत्र का निरुपण : भारतीय धर्मशास्त्रमें मानव के कल्याण के लिए भिन्न-भिन्न तरह की साधना पद्धिति आलेखन किया गया है। ऐसे तो विश्व के प्रत्येक धर्म में मानव की उन्नति के लिए मंत्र शक्ति का भी सहारा लिया गया है। मंत्र के जप और ध्यान से व्यक्ति का परमकल्याण होता है। एक ओर से सोचे तो मंत्र मात्र वर्ण ही है। वर्ण या अक्षर सेही मंत्र होता है। अक्षर शब्दात्मक शक्ति है। शब्द टाईमबम की भाँति होते हैं। जिस प्रकार अवधि पूर्ण होते हीबमका विस्फोट हो जाता है, वैसे ही मंत्र की शक्ति भी समय पाकर फलित होती है। नमस्कार महामंत्र के एक - एक अक्षर में इतना सामर्थ्य है कि जन्म व मृत्यु के क्लेशों से जीव को मुक्त कर वह नवजीवन प्रदान करता है।३१६ ___ नमस्कार महामंत्र की महानता शास्त्रकारोने परम सद्भावना से वर्णित की है। नित्य जप करनेवालो के रोग, शोक, व्याधि, दुःख, पीड़ा आदि सभी बाधाओं मिट जाती है। नमस्कार मंत्र सद्बुद्धि सद्विचार और सत्कर्मों की परंपरा को सर्जन करता है।३१७ अज्ञान एवं अहंकार के आग्रह को मिटाने के हेतु नमस्कार मंत्र अनिवार्य है।३१८ पवित्र, अपवित्र, रोगी दु:खि आदि किसी भी अवस्थामें इस मंत्र का जप करने से व्यक्ति बाह्य और आभ्यंतर दोनों दृष्टियोंसे पवित्र हो जाता है। यह मंत्र सब प्रकार के विघ्नों को नष्ट करनेवाला है।३१९ संसारिक या धार्मिक किसी भी कार्य के प्रारंभ में नमस्कार मंत्र का स्मरण करने से वह कार्य निर्विघ्न रुप से पूर्ण हो जाता है। पापी से पापी व्यक्ति भी इस मंत्र के स्मरण से पवत्रि हो जाता है। इस महामंत्र के गुण इतने है कि - जिनकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते । इस मंत्र की महिमामें अनेक ग्रंथ रचे गये हैं। संक्षेप में कहा जाए तो हम यह कह सकते है कि - यह मंत्र तीनों लोकों में अनुपम है। इसके समान और कोई चमत्कारी और प्रभावशाली मंत्र मिलता ही नहीं है। महामंत्राधिराज त्रैलोक्य दीपक नवकार मंत्र के बारे में पूज्य भद्रंकर विजयजीने परम श्रद्धा से विगतपूर्ण आलेखन किया है। नवकार मंत्र की सर्व सिद्धांत सम्मतता मंत्र शास्त्र में नवकार मंत्र - ___ मंत्र शास्त्र की दृष्टि से नमस्कार महामंत्र सभी तरह के पापमय विष का नाश करनेवाला है। साधक के मनमें किसी भी व्यक्ति या कार्य के लिए बूरे भाव से इस मंत्र का स्मरण करने (२७७)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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