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________________ आचरण को विकसित करने के लिए मात्र विवेक से काम नहीं चलेगा। उसके साथ स्थायी भावों को भी सुदृढ़ बनाना पड़ेगा। ज्ञान मात्र से, दूराचार से हम नहीं बच सकेंगे और इसके लिए उच्च आदर्श प्रति श्रद्धारुप भावना का होना अनिवार्य है । नमस्कार महामंत्र अत्यंत उच्च और पवित्र आदर्श है और इसके सतत रटन से हमारे स्थायी भावोंमें अच्छा परिवर्तन आयेगा मन पर हमारा नियंत्रण रहेगा संकल्प विकल्प से हम दूर हो जायेंगे और हमारे चारित्र के विकास के लिए मन की यह स्थिरता उत्तम साबित होगी। __इस महामंत्र के स्मरण से, चिंतन और ध्यान से कषाय भावोंमें अवश्य परिवर्तन होता है। मंगलमय पंचपरमेष्ठि आत्माओं के स्मरण मात्र से मन पवित्र बन जाएगा, दूराचार दूर हो जाएगा और सदाचार की ओर हमारी प्रगति होगी। मानसिक विकार दूर करने के लिए उच्च आदर्श के प्रति दृढ़ श्रद्धा महान उपयुक्त साबित होगी। ___ मनोविज्ञान का एक सिद्धांत है कि - मानवी अपने भीतर जिस प्रकार की योग्यता को प्राप्त करना चाहता है इस योग्यता का बार-बार स्मरण और चिंतन करना चाहिए । हमारा अंतिम लक्ष्य भी पंचपरमेष्ठि के पांच पदोंमें से किसी एक पदमें उत्तम स्थान प्राप्त करने का है। इतना ही नहीं जैन दार्शनिकोने यह भी बतलाया है कि - साधक की अंतिम इच्छा सच्चिदानंद स्वरुप आत्मा को प्राप्त करने की होती है। इसलिए नमस्कार महामंत्र का जप परमावश्यक है। मनोविज्ञान यह भी बतलाता है कि - प्रत्येक मानव में मूलभूत मनोवृत्ति समान होती है, लेकिन मनुष्य की विशेषता यह होती है कि इन वृत्तियों में वह समूचित परिवर्तन कर सकता है। इस परिवर्तन के लिए चार महत्त्व के अवलंबन दर्शाये गये है वे निम्नलिखित हैं। इसलिये मानवी की मूलवृत्तिमें Repression दमन Inhibition विलीयन Rediresion मार्गान्तरीकरण और Sublimcision शोधन (उच्चारीकरण) ये चार परिवर्तन होते रहते हैं वे मानव कर सकते हैं और ऐसे परितर्वन की क्षमता मानवी में है। इस प्रकार का परिवर्तन करके वह प्रगति की ओर आगे बढ़ सकता है, श्रद्धा और विवेक प्राप्त कर सकता है और अंतीम लक्ष्य परमपदकी प्राप्ति भी कर सकता है।३१४ । नमस्कार महामंत्र की सहाय से साधक अपने मनपर अंकुश रख सकता है। उसकी नैतिक भावना का विकास होता है। अनैतिक वासनाओंका दमन करके संस्कार जागृत कर सकता है। अज्ञान का अंधकार दूर हो जाता है और ज्ञान का प्रकाश उसे प्रगति की सच्ची दिशामें आगे ले जाता है। इस मंत्र के निरंतर रटन, स्मरण और चिंतन से आत्मामें एक विशिष्ट प्रकारकी शक्ति उत्पन्न होती है, जिसको वर्तमान परिभाषामें विद्युत कहा जाता है। इस शक्ति से आत्मा की विशुद्धि होती है और परम शांति की प्राप्ति होती है।३१५ (२७६)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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