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उपग्रह - आधार या सहयोग पर अवस्थित हैं।३१२
नवकार मंत्र द्वारा सूचित, उद्बोधित श्रद्धा, भक्ति, कृतज्ञता, विनयशीलता आदि ऐसे ही भाव है, जिनसे मानव जीवन में सच्ची शांति का अनुभव कर सकता है। मनुष्य को उपकारी पुरुषों के प्रति कभी भी कृतघ्न नहीं होना चाहिये । कृतघ्नता बहुत बड़ा दोष है। पाप का मूल है, कृतघ्नी पुरुष अपने जीवन में कदापि उन्नति नहीं कर सकता। नवकार मंत्र की प्रत्येक पंक्ति में नमो शब्द इसी भाव का सूचक है।नमस्कार यह आत्मा के दिव्य खजाने की गुप्त चाबी है। A key to Cosmic secret ३१३
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से नमस्कार महामंत्र :
___ ज्ञानियों ने नमस्कार महामंत्र के बारेमें भिन्न-भिन्न दृष्टिबिंदुओंसे बहुत प्रभाव दिखलाया है। जब तक मानवी के पास मन है तब तक मनमें संकल्प विकल्प अवश्य उठते हैं। सारे संकल्प विकल्पोंपर अधिकार जमाना या तो उससे उत्पन्न सर्व दु:खों पर विजय प्राप्त करना कर्तव्य है। कोई भी व्यक्ति मन पर विजय प्राप्त कर लेती है - अमनस्क दशा प्राप्त कर लेती है तो उसे परमानंद की प्राप्ति होती है। मनोवैज्ञानिक यह बताता है कि मानवी की बाह्य दृश्य क्रियाए उसके चेतन मन में होती है और भीतर की अद्दशय क्रियाओं अचेतन मनमें होती हैं। मनकी इन दोनों क्रियाओं को मनोवृत्ति कहा जाता है।
मनोवृत्ति के प्रधान तीन विभाग है। १) ज्ञानात्मक, २) संवेदनात्मक और ३) क्रियात्मक
ज्ञानात्मक मनोवृत्तिके संवेदन प्रत्यक्षीकरण, स्मरण, कल्पना और विचार ये पांच उपभेद हैं।
संवेदनात्मक मनोवृत्ति के संदेश, उत्साह, स्थायी भाव और भावना ग्रंथी ये चार उपभेद हैं।
क्रियात्मक मनोवृत्ति के सहज क्रिया, मूलवृत्ति, आदत, इच्छित किया और चारित्र ये पाँच उभेद बताये गये हैं। ___नमस्कार महामंत्र के स्मरण के ज्ञानात्मक मनोवृत्ति, उत्तेजीत होती है और इसके साथ संवेदनात्मक और क्रियात्मक अनुभूति को भी उत्तेजन मिलता है। नमस्कार महामंत्र की आराधना के लिए ज्ञानकेंद्र और क्रिया केंद्र का समन्वय होता है इससे मानव मन सुदृढ बनता है और आत्मिक विकास के लिए उसे प्रेरणा मिलती है।
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