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स्थान नहीं है लेकिन हम यह जानते है कि- अनेक व्यक्तियों को शारीरिक और मानसिक शांति देने का उत्तम कार्य नवकार मंत्रद्वारा होता है। नवकार मंत्र के स्मरणमात्रसे भारी संकट
और भयानक कष्ट से एक पल में मुक्ति मिल जाती है। श्रद्धा और मनकी एकाग्रता से यदि नवकार मंत्र का स्मरण या जाप करने से सभी प्रकार की शारीरिक या मानसिक विपत्तियाँ आसानी से दूर हो जाती है। नवकार मंत्र अनादि है । यह मंत्र जैनों काही मंत्र नहीं सारे विश्वके लिए परम कल्याणकारी मंत्र है। मांगल्यकारक मंत्र है और जीवन की सभी परिस्थितीयों में नवकार मंत्र का स्मरण और जप परमशांति दायक सिद्ध हुआ है और होता रहेगा।
नवकार से कृतज्ञभाव का उद्भव तथा विकास
नवकार मंत्र श्रुत - ज्ञान का रहस्य भूत तत्व है । यह चतुर्दश पूर्वां का सार है। इसकी यह विशेषता है कि - इसको अपनाने से कृतज्ञ भाव का उद्भव होता है तथा परोपकार का भाव समुदित होता है। परोपकार के गुण को सूर्य की और कृतज्ञ भाव को चंद्र की उपमा दी जा सकती है। जिसने अपने पर उपकार किया हो, उपकृत व्यक्ति के हृदय में उसके प्रति सदा कृतज्ञ भाव रहना चाहिये । यह धर्म का आधार है।
__ अरिहंत आदि पंच परमेष्ठी नवकार मंत्र में वंदीत नमस्कृत है । वे हमारे परम उपकारक है। उनके उपकार को मानना, उनके प्रति आदर तथा सम्मान का भाव रखना उपकृत मनुष्यों का कर्तव्य है । नवकार मंत्र हमें कृतज्ञता का संदेश प्रदान करता है । पंचपरमेष्ठी सभी लोगों का सदा से अत्यंत उपकार करते आये हैं। उन्होंने भूतकाल में उपकार किया हैं। वर्तमान काल में भी वे हम सब के लिए प्रेरणा प्रदान करते हैं । भविष्य में भी वे समस्त प्राणियों के लिए प्रेरणा प्रद तथा उपकारी रहेंगे। अज्ञान एवं अहंकार के आग्रह को मिटाने हेतु नवकार की आराधना अनिवार्य है। नवकार का अर्थ देव और गुरु की अधिनता का स्वीकार है ।२९९ ___परोपकार धर्म का अनन्य अंग है। कहा गया है - मैत्री भाव का विकास परोपकार का सेवन तथा शमवृत्ति की उपासना - ये धर्म के स्पष्ट तत्व है।३००
आचार्य हेमचंद्र ने योगशास्त्र में मार्गानुसारी के पैंतीस गुणों में परोपकृति कर्मठः । परोपकृति - कर्मठता का उल्लेख किया है। उसका अर्थ यह है कि मार्गानुसारी पुरुष परोपकार करने में सदैव, उद्यत तत्पर रहता है।३०१
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