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________________ आंतरबाह्य विशुद्धि में रंग के साथ नवकार मंत्र का ध्यान बहुत ही उपकारक सिद्ध होगा और विषय कषायों को भगाने में उसका साथ परम मांगलीक और परम कल्याणकारी सिद्ध होगा । २९६ नवकार मंत्र और शरीर विज्ञान - नमस्कार महामंत्र का भक्तिपूर्वक उच्चारण मनन और चिंतन करने से आत्मा में अनेक का आविष्कार होता है। भावपूर्वक मंत्र के जाप और ध्यान से अध: पतन की अवस्था दूर होती है, राग द्वेष की दीवार जर्जरित होकर तूटने लगती है । दर्शन मोहनीय शिथील हो जाने से चारित्र मोहनीय भी मंद हो जाता है । यह क्रिया मंदगति से होती है और मंदता से उत्पन्न आत्मिक शक्ति को प्रारंभ में मानसिक विकारों के साथ युद्ध करना पड़ता है, परंतु नवकार मंत्र की अपनी अद्भूत शक्ति से मानसिक विकार जाते हैं। रागद्वेष की दुर्भेद्य दिवार को तोड़ने में नमस्कार मंत्र समर्थ है। विकास की ओर आगे बढ़नेवाले आत्मा के लिए यह मंत्र सर्वोत्तम कल्याणकारी साबित हो सकता है । इस मंत्र की आराधना से आत्मशुद्धि इतनी बढ़ जाती है कि मिथ्यात्व को पराजित करने में विलंब नहीं लगता । इतना ही नहीं शारीरिक कष्ट से मुक्त होकर मानसिक शांति भी मिल सकती है। आत्मा जब प्रमाद का त्याग करता है तब वह शुद्ध और निर्मल बन सकता है। २९७ लोभ आदि कषाय का दमन करके उत्तरोत्तर विशुद्धि प्राप्त करना साधक का एक मात्र लक्ष्य बन जाता है। नवकार मंत्र के प्रत्येक पद में शारीरिक कठीनाईयाँ और मानसिक क्षमता दूर करने की महान शक्ति भरी हुई है। नवकार मंत्र के स्मरण से बाह्य विषयों में अरुचि भी होने लगती है और क्रोधादि भावों में मन की प्रवृत्ति नहीं होती है और शांति की ओर साधक की गति होती है। विषय और कषाय से मुक्ति पाने का वह सन्निष्ठ प्रयत्न करता है। शास्त्रकारों ने दर्शाया है कि - नमस्कार मंत्र की आराधना करनेवाले सम्यक्दृष्टि का राग नष्ट हो जाता है। वह रागी नहीं वीरागी बन जाता है। नमस्कार मंत्र केवल इस जन्म के ही नहीं अनेकों पूर्व जन्म के कर्मबंधन और पापोंसे मुक्त करता है और शाश्वत शांति प्रदान करता है। आधि, व्याधि, और उपाधिका अब तो साधक के शरीर या मनके भीतर कोई स्थान ही नहीं रहेगा और वह आत्म कल्याण के पथ पर आगे बढ़ता जाएगा । २९८ जैन दर्शन किसी भी प्रकारके चमत्कार को मानता नहीं । चमत्कार का जैन धर्म में (२७१)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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