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________________ विषयों से वीरत हो जाती है, तो मन में कलूषित परिणाम नहीं आते। समता का अर्थ प्रशांत भाव या क्षोभ वर्णन है। जो दूसरों को अपने समान या सदृश्य समझता हो, वह उन पर क्षुब्ध - कृद्ध कैसे हो सकता है ? जो औरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझता हो, वह कामना या लोभ के वशीभूत होकर दूसरों को कष्ट नहीं पहुंचा सकता। वैसा व्यक्ति माया, मिथ्यात्व एवं निदानरुप शल्य से भी रहित होता है। नवकार मंत्र द्वारा जीवन में ये सब घटित होता है, क्योंकि उसे अशुभ आत्म परिणामों या अशुभ लेश्याओं का शुद्धिकरण होता है। नवकार महामंत्र समस्त जीवों में समता और स्नेह के परिणाम विकसित करता है ! उससे विश्ववात्सल्य की भावना उत्पन्न होती है। आत्मा शांत, दांत, निष्काम, निर्दभ और निःशल्य होकर उत्तम कार्यों में तत्पर होती है ।२९१ __ लेश्या विशुद्धि से आत्मा में निर्मलता, पवित्रता और सात्विकता के उदात्तभाव की उत्पत्ति और वृद्धि होती है। नवकार लेश्या विशुद्धि का अनन्य हेतु हैं। रंग विज्ञान के आधार पर नवकार मंत्र का निरुपण रहस्यों की खोज मानवी की सनातन खोज है। यह संसार बड़ा ही रहस्यमय है और रहस्यों की खोज संसारमें होती ही रहती हैं। खोज के बिना किसी भी क्षेत्र में नया आविष्करण हो ही नहीं सकता। विकास की गति को आगे ले जाने के लिए खोज करना अनिवार्य है। चाहे अध्यात्म हो या चाहे विज्ञान । चाहे राजकीय या चाहे आर्थिक समस्या हो । खोज करने से ही नया - नया परिणाम प्राप्त होते हैं। खोज का द्वार कभी बंद नहीं होना चाहिए। आज के विज्ञान की सफलता का रहस्य भी प्रकृतिके गूढ़तम रहस्यों की खोज में संलग्न है। वैज्ञानिक रहस्यों को खोजने के नये - नये प्रयत्न चल रहे हैं। जैसे - जैसे विश्व के रहस्यों में कोई भी गहरी डूबकी लगाता है, वैसे - वैसे नए - नए रहस्यों उनको सामने उद्घाटित होते हैं और पौद्गलिक जगतके सारे नियम हमारी ज्ञान की सीमा में आ जाते हैं। आज का युग विज्ञान का युग है। अनेक विषयों पर प्रयोग और गवेषणायें हो रही है। नये - नये तथ्य प्रकाश में आ रहे हैं। परमाणुवाद तथा वनस्पति - जगत् आदि के संबंध में वैज्ञनिकों की लंबी खोज के बाद जो तथ्य उद्घाटित हुए हैं, उनमें से अनेक तथ्यों की सहस्त्रों वर्षों पूर्व वीतराग सर्वज्ञ महापुरुषों ने व्यक्त किए थे। आगमों में प्रतिपादित अनेक सिद्धान्त वैज्ञानिक दृष्टिसे भी तथ्यपूर्ण सिद्ध हो रहे हैं। (२६८)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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