SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह दृष्टांत छहों लेश्याओं पर लागु होता है। जो पेड़ को उखाड़ने की बात कहता है , उस मनुष्य के परिणाम अत्यंत पापमय है । जो कृष्ण लेश्या का रुप है। दूसरा जो बड़ी डालियाँ काटने की बात कहता है , उसके परिणाम पहले से कुछ कम दूषित हैं। वह नीले लेश्या का रुप है। तीसरा जो छोटी टहनीयाँ काटने को कहता है, उसका परिणाम दूसरे की अपेक्षा कूछ और कम दुषित है, वह कपोत लेश्या का रुप है। चौथा जो फलों के गुच्छ तोड़ने की बात कहता है, वह तेजस लेश्या का रुप हैं । पाँचवाँ जो फलों को तोड़ने की बात कहता है, वह पद्म लेश्या का रुप हैं। छट्ठा व्यक्ति जो अपने आप नीचे गिरे हुए फलों को लेने को कहता है, वह शुक्ल लेश्या का रुप हैं। इनमें परिणामों की धारा क्रमश: निर्मल होती गई है।२८६ गोम्मटसार में लेश्या की परिभाषा करते हुए बतलाया गया है - कषायोदय से अनुरंजित योग प्रवृत्ति लेश्या हैं।२८७ यद्यापि आत्मा का स्वरुप स्फटीक के सदृश्य निर्मल है, तो भी कर्म पुद्गलों से आवृत्त होने के कारण उसका स्वरुप विकृत रहता है। उस विकृति की न्यूनता अधिकता के कारण आत्मा के परिणाम - विचार भले- बूरे होते रहते हैं। विचार धारा की शुद्धि एवं अशुद्धि में अनंतगुण तरतम भाव रहता है । पुद्गल जनीत इस तरतम भाव को संक्षेप में छह भागों में बाँटा गया है। इन छह विभागों को छह लेश्या कही जाती है। इनमें पहली तीन अधर्म लेश्यायें हैं और अंतीम तीन धर्म लेश्यायें हैं। लेश्याओं के नाम द्रव्य लेश्याओं के आधार पर रखे गये हैं।२८८ शास्त्रों में लेश्या पद के अंतर्गत सम-कर्म, सवर्ण, सम लेश्या, समवेदना, सम क्रिया, समायु, तथा कृष्ण, नील कापोत, तैजस, पद्म और शुक्ल लेश्या के आश्रय से प्रभावित जीवों का वर्णन किया गया है ।२८९ उत्तराध्ययन सूत्र में कृष्ण, नील, कापोत, पद्म तथा शुक्ल लेश्याओं के रुप में उनका उल्लेख हुआ है । तत्पश्चात् उनका विस्तार से वर्णन हुआ है । कृष्ण, नील और कापोत लेश्यायें अशुभ लेश्यायें हैं। अधर्म मूलक हैं। तेजस, पद्म और शुक्ल लेश्यायें शुभ या धर्म मूलक है।२९० आत्म परिणामों या लेश्याओं की शुद्धि के बिना जीव आत्मश्रेयस के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता । नवकार मंत्र की आराधना से क्षमता, दमता तथा समता आदि गुणों का विकास होता है । क्षमता का अर्थ शांत या क्षमाशीलता है। क्षमाशील व्यक्ति क्रोध रहित हो जाता है । दमता का अभिप्राय इंद्रिय दमन या कामनाओं का वर्णन है। जब इन्द्रियाँ (२६७)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy