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इस संसार में अपना जीवन व्यतीत करता है और किसी भी जीव को दुख पहुँचाने का किसीको अधिकार नहीं है । आत्माको परमात्मा बनाने के लिए लेश्याओं का स्वरूप समझकर जागृत बुद्धि से अशुभ लेश्याओं को त्याग कर शुभ लेश्याओंकी ओर हमारी प्रगति होनी चाहिए ।
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विकास की गति मंद होती है और ऐसा भी हमें उदाहरण मिलता है कि जीव बड़ी शीघ्र गति से परमपद को प्राप्त कर सकता है। भगवान महावीर के विचारमें या तो आदेश में धर्म और विज्ञान ऐसा कोई अलग अलग विभाग नहीं था । धर्म ही विज्ञान है ऐसा उनका कहना था। वर्तमान युगमें भी हम देख सकते है कि - विज्ञान यदि धर्म से विमुख हो जाएगा तो संसार का सर्वनाश हो जाएगा। विज्ञान और धर्म का समन्वय विश्वमानव के लिए कल्याणकारी होगा। वैज्ञानिक संपत्तिका विवेक पूर्वक सद्उपयोग महान उपकारक बन सकेगा। थोड़ी क्षणों की सुखशांति के लिए वैज्ञानिक साधनोंका उपयोग नहीं करना चाहिए । जैन धर्म में तो हमारे प्रत्येक कार्य में यतना, विवेक रखने को कहा है, क्योंकि यतना या विवेक रखनेसे अनेकों कर्म बंधन से हम बच सकते है । संयम और निग्रह हमारे जीवन का केंद्रबिंदू बनना चाहिये |
हमारे वर्तमान जीवनमें कदम कदम पर प्रलोभन और बाधाएं है। जीव जरा भी प्रमाद करेगा तो वह अपने साधना पथ से दूर हो जाएगा। डगर डगर पर जीव को लुभानेवाली अनेक सांसरिक प्रवृत्तियों का सामना करना आसान काम नहीं है । चारों ओरसे साधक की साधना बाधा यें उपस्थित हो वैसा ही माहोल देखनेको मिलता है। फिर भी जागृत साधक इन सभी परेशानियोंसे विचलित नहीं होता और अपने लक्ष्य की ओर गति करना अपना कर्तव्य समझता है । वह जानता है कि - साधना का मार्ग कठीन है। सतत् पुरुषार्थ और शुभ प्रवृत्ति से वह किसी भी संकट को दूर कर सकता है।
जैन धर्म श्या की चर्चा करते हुए ज्ञानियोने बताया है कि हमारे जीवन के अंतिम समयमें जैसी हमारी लेश्या होगी वैसा ही हमारा आगामी भव होगा । यदि हम जीवन की अंतिम क्षणों में कृष्ण नील या कापोत लेश्या जैसी अशुभ लेश्याओं के भावों से इस संसार की विदा लेते हैं तो हमारा आगामी भव उनमें से किसी भी एक अशुभ लेश्यामें अवतरीत होगा और पाप प्रवृत्ति से छुटकारा पाना मुश्किल हो जाएगा। नरक निगोद की भयानक यातना सहना ही एक मात्र उपाय रहेगा शुभ लेश्याएँ हमारे लिए शुभ परिणाम लाएगी। यदि जीव तेजो लेश्या तक पहुँच जाता है तो भी उसके कल्याण की प्रवृत्ति जोर से आगे बढ़ेगी वह धर्म प्रवृत्ति और कल्याण प्रवृत्ति आसानी से कर सकेगा और क्रमश: मुक्ति की मंझिल प्राप्त करना उसके लिए सुविधा जनक बन जाएगा। तेजो लेश्यासे वह पद्म और शुक्ल
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