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________________ जैनधर्म ईश्वरवादी धर्म नहीं है अर्थात ईश्वर कर्तृत्व में विश्वास नहीं करता। हिंदू धर्म या अन्य धर्म की तरह ईश्वरको ही सर्वस्व माननेवाला नहीं है। मानव स्व पुरुषार्थ से स्वयं परमात्मा बन सकता है, ऐसा जैन धर्म अनेक धर्मग्रंथो में बार बार दोहराता है। इतना ही नहीं, शास्त्रकारोंने यहाँ तक कहा है कि - जीव अपनी साधना से स्वयं शिव बन सकता है। अन्य धर्म में भगवान की भक्ति करने से साधक भक्त बन सकता है। जैन धर्म में भगवान की भक्ति करने वह स्वयं भगवान बन सकता है ।२८° आत्मा परमात्मा बन सकती है। आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए भवभ्रमण से मुक्ति पाने के लिए लेश्याओं का विशुद्ध होना अनिवार्य है। विशुद्ध लेश्या हमारी आत्मा पर लगी हुई मलिन कर्मरज को दूर करने की क्षमता रखती है। भवभ्रमण से मुक्ति पाने के लिए लेश्या जितनी ही शुद्ध होगी उतना हमारा सरलतासे आत्मकल्याण होगा। कर्म पुद्गल के प्रभाव से बचने के लिए इस संसार में विशुद्ध लेश्याओं की सहाय से बढ़कर शायद ही और कुछ हो सकता है। संसार के छोटे से छोटे प्राणी से लेकर बड़े से बड़े प्राणी तक अर्थात साधारण मनुष्य से लेकर गौतम स्वामी या तो भगवान महावीर तक सभी को मुक्ति प्राप्त करने के लिए नवकार मंत्र की एवं विशुद्ध लेश्याओं की सहाय की परम आवश्यकता है। विशुद्ध लेश्याओं का ज्योर्तिमय तेजवर्तुल कर्म के किसी भी गहन अंधकार को दूर करने की क्षमता रखता है। उस फौलादी चक्र के समक्ष कार्मिक पुद्गाल की समग्र शक्ति प्रलय कालमें तांडव नृत्य करते हुए शीव के पैरो के नीचे कुचले जाते मुंगफली के छीलके तरह नष्ट हो जाती है। २८१ यह जगत् जीव और अजीव का समवाय है। जीव अपने द्वारा संचित किये गये कर्मो के आधार पर विभिन्न स्थितियों में विद्यमान हैं । सुख-दुखात्मक, काम-क्रोधात्मक, मोहरागात्मक, प्रशस्त-भावात्मक, अप्रशस्त-भावात्मक, जिन जिन दशाओंमे जीव विद्यमान होता हैं, तद्नुरूप पुद्गल परमाणुओं से वह आवृत्त होता है। इसी समस्या से उसे मुक्त करने के लिए विशुद्ध लेश्याएँ महान सहायक हो सकती है ।२८२ लेश्या और आगामी जन्म जैन धर्म वैज्ञानिक धर्म है। भगवान महावीर विश्वके प्रथम वैज्ञानिक है। भगवान की वैज्ञानिकता भौतिक सुखो का कभी भी आदेश नहीं देती है लेकिन विश्व के जीवमात्र के कल्याण और मांगल्य की शुभभावनाका मांगल्य संदेश देती है। जीवमात्र परस्पर सहयोग से (२६४)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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