________________
शांती चली जाती है। पश्चात्ताप और वेदना से वह पारावार पीड़ित-दुखी होती है । दिन-रात उसे कहीं भी चैन नहीं पड़ती। रात की नींद भी हराम हो जाती है । वह निद्रा में चलने लगती है। विश्व का उत्तम नाट्य दृश्य Sleep Walking Scene लेखक की कलम से हमें प्राप्त होता है। अशुभ भावनाओंका - अशुभ लेश्याओंका जितना उत्कृष्ट वर्णन इस दृश्य में हुआ है वैसा शायद ही किसी और कृतिमें मिल सके । पाप की सजा अवश्य मिलती है। अति महत्त्वाकांक्षा विनाश सर्जती है। इस सत्यको अतियश कलापूर्ण रीतिसे लेखक ने यहाँ निरूपण किया है और विश्वको उत्तम दृष्टांत प्राप्त हुआ है।
लेश्या से भवमुक्ति
जैन शास्त्रोमें प्रत्येक परिभाषा का विशेष अर्थ होता है। किसी भी परिभाषा का अंतिम उद्देश्य कर्म निर्जरा अथवा आत्मज्ञान की प्राप्ति है। ऐसा भी कहा गया है कि - जैनधर्म ने विश्वधर्म को ज्ञानका महासागर प्रदान किया है। प्रत्येक परिभाषा अपनेमें बड़ा ही अर्थ संगोपित रखती है। आत्मा का उत्कर्ष याने आत्मा के विरल गुणोंकी प्राप्ति। ज्ञानिओने ऐसा वर्णन किया है कि - हमारी आत्मा अनेक आत्मगुणोंसे भरी है, मगर कर्म पुद्गलों के आवरण से उसका सही रूप हम नहीं जान सकते हैं, लेकिन साधना और पुरूषार्थ से जागृति और प्रमाद के त्याग से जीव आत्मा पर लगे हुए आवरण को दूर कर सकता है। तभी अज्ञान अंधकार का आवरण दूर हो जाता है। तब ज्ञान की तेजोमय ज्योती प्रकाशित हो जाती है। .
शुभ लेश्याओं का मुख्य कार्य अंधकार को दूर करके प्रकाश का स्वागत करना है। शास्त्रकारोंने लिखा है कि - अशुभ लेश्या से कर्मबंधन होता है, और शुभ लेश्या से कर्ममुक्ति होती है। जैसा भाव, वैसा भव ।' यह छोटा सा सूत्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हमारे जीवन से - इस संसार के भवभ्रमण से, जन्ममरण के चक्र से यदि हमें मुक्ति पाना हो तो शुभ लेश्याएँ हमारे लिए बहुत ही उपकारक सिद्ध होगी।
__ मुक्ति पाने के लिए प्रत्येक जीव साधना कर सकता है। जैन धर्म व्यक्ति की साधना पर बहुत ही चिंतन करता है और भगवान महावीर ने स्पष्ट दर्शाया है कि - प्रत्येक साधक श्रावकाचार का पालन करके और बादमें साधू आचार का पालन करके अरिहंत पद - सिद्धपद की प्राप्ति कर सकता है। व्यक्ति स्पष्ट ही अपना भाग्य निर्माण कर सकती है। व्यक्ति की साधना की स्वतंत्रता जैन दर्शन की जगत दर्शन को अनुपम भेट है।
(२६३)