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________________ परिणति भी उसके मानसिक भावों या परिणामों के अनुसार बनती है । व्यक्ति की शुभाशुभ विचार धारा, शुभाशुभ कर्म परमाणुओं को संचित करती है, व्यक्ति पर उसका वैसा ही प्रभाव होता है। आत्मा के शुभाशुभ परिणाम भाव लेश्या कहे जाते हैं। २६५ लेश्या की परिभाषा: ___ जिसके द्वारा जीव पुण्यपाप से अपने को लिप्त करता है, उनके आधिन करता है उसको लेश्या कहते हैं ।२६६ धवलामें लेश्या की दूसरी परिभाषा भी दी गई हैं। जो कर्मों से आत्मा को लिप्त करती है उसे लेश्या कहते हैं ।२६७ अथवा जो आत्मा और कर्म का संबंध करानेवाली है उसको लेश्या कहते हैं। २६८ लेश्या के दो मुख्य भेद है। १)द्रव्य लेश्या और २) भाव लेश्या श्या २७३ द्रव्यलेशा: वर्ण, नाम, कर्म के उदय से उत्पन्न हुआ जो शरीर का वर्ण है उसको द्रव्य लेश्या कहते हैं । उसके उपभेद छ: है। १) कृष्ण लेश्या २) नील लेश्या ३) कापोत लेश्या ४) तेजोलेश्या ५) पद्मलेश्या और ६) शुक्ल लेश्या २७२ भावलेश्या : ___ कषाय से अनुरंजित जीव की मन, वचन, काय की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं । भावलेश्या को औदयिकी कहा जाता है, क्योंकि मोहनीय कर्म के उदय, क्षयोपशम, उपशम अथवा क्षय से उत्पन्न हुआ जो जीव का स्पंदन है वह भाव लेश्या है ।२७४ छद्रव्य लेश्यामें से कृष्ण, नील और कापोत ये तीनों अशुभ लेश्याओं हैं और तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ल लेश्या ये तीनों शुभ लेश्यायें है। नवकार मंत्र की सहाय के प्रत्येक साधक का यह कर्तव्य हो जाता है कि क्रमश: अशुभ लेश्यासे शुभ लेश्या की ओर अपनी साधना में विकासशील बनें। जब तक लेश्या शुद्ध नहीं होती तब तक जीव का शुद्ध विकास असंभव है।२७५ शास्त्रकारोने यह भी बताया है कि - नवकार मंत्र की सहाय से लेश्या परिवर्तन का काम सरल हो जाता है। नवकार मंत्र के प्रत्येक पद जीव को शुभ लेश्या की ओर ले जान की क्षमता रखता है। ऐसा भी कहा गया है कि - जीव की अंतिम समय की जैसी लेश्या होती है उसके अनुसार ही उसका भावि- भव निर्माण होता है। यदि कोई जीव को अंतिम (२५८)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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