________________
अष्टांग योग : नवकार महामंत्र परिशीलन
आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में योग का अत्यंत महत्त्व है । योग चित्तवृत्तियों के निरोध का पथदर्शन करता है। २५१ यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान समाधि - योग के ये आठ अंग है।
२५२
इनके अभ्यास और साधन द्वारा साधक समाधि-अवस्था प्राप्त करता है । २५३ योग जिससे अनुप्रणित होकर विभिन्न परंपराओं में साधना पद्धतियों का विकास हुआ।
-
अष्टांग योग के संदर्भ में णमोक्कार मंत्र का गंभीरता से परिशीलन करने पर यह सिद्ध होता है कि इसके द्वारा जीवन का समाधिमय महान साध्य सहजरूप में स्वायत्त हो जाता है ।
अपने चित्त की वृत्तियों को निरुद्ध करता हुआ साधना का यह एक ऐसा वैज्ञानिक मार्ग है,
१) यम
योग का प्रारंभ यम के साथ हो जाता है । अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह योग में ये पाँच यम स्वीकार किये गए हैं। जब यमों का जाति, देश, काल, समय के अपवाद, विकल्प या छूट के बिना पालन किया जाता है । तब वे व्रत कहलाते हैं । २५४
जाति का तात्पर्य गो आदि पशु अथवा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि है । जब व्यक्ति इन जातियों की हिंसा आदि का विकल्प नहीं रखता, तब वह जाति निरपेक्ष यम महाव्रत का रुप ले लेता है उसी प्रकार जब हरिद्वार, मथुरा, काशी आदि स्थानों का विकल्प नहीं रखा जाता, तब वह यम देश विषयक अपवाद से रहित होता है । कहने का तात्पर्य यह है कि एकादशी, चतुर्दशी आदि तिथियों का विकल्प स्वीकार नहीं किया जाता, तब वह काल के अपवाद से रहित होता है ।
यहाँ प्रयुक्त समय शब्द काल का सूचक नहीं है किंतु विशेष नियम या प्रयोजन सिद्धि का सूचक है + अर्थात् जब साधक किसी भी विशेष प्रयोजन का अपवाद न रखता हुआ यम का पालन करता है, तब वह यम समय के अपवाद से रहित होता है। यमों का अपवाद रहित पालन महाव्रत कहा जाता है । योग - दर्शन में प्रयुक्त महाव्रत शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। जैन धर्म में भी इसी शब्द का प्रयोग हुआ है । २५५ वहाँ मन, वचन, काय इन तीनों योंगों तथा कृत, कारित, अनुमोदित तीन करणोंद्वारा व्रत पालन का विधान है । अर्थात् महाव्रत स्वीकार करने वाले के लिये किसी भी प्रकार का अपवाद नहीं होता । वह समग्रतया इनका पालन करता है ।
(२५३)