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________________ - श्रुतज्ञानवरणीय कर्म का क्षयोपशम होने पर होती है, इस अपेक्षा से यह मंत्र उत्पाद - व्ययवाला प्रमाणित होता है । २४४ नैगम संग्रह और व्यवहार नय की अपेक्षा यह मंत्र नित्य अनित्य दोनों प्रकार का है । ऋजु सूत्र नय की अपेक्षा इस महामंत्र की उत्पत्तिमें वचन, उपदेश और लब्धि कारण है और शब्दादी नय की अपेक्षा से केवल लब्धि ही कारण है । शब्द और अर्थ की अपेक्षा से नमस्कार मंत्र नित्यानित्यात्मक है । शब्द नित्य और अनित्य दोनों प्रकार होते हैं । २४५ सप्त नयों के आधार पर नमस्कार मंत्र नित्य है । वह अनादि - अनुत्पन्न है किंतु विशेष ग्राही नय प्रक्रिया के अनुसार उसे उत्पन्न भी माना जाता है, क्योंकि साधक जब उच्चारण करता है तब उसका शाब्दिक रुप प्रगट होता है। उसके शाश्वत् रुपों को नयवाद के आधार पर प्रमाणित मानने से साधक की श्रद्धा, आस्था और विश्वास में दृढ़ता आती है जिससे वह आराधनामें विशेष उत्साह प्राप्त करता है और नवकार मंत्र के प्रति उसके पूज्यभाव में वृद्धि होती है। उसे शांति और मंगल का आनंद प्राप्त होता है । शुद्ध नयानुसार आत्मा का स्वरुप : सामान्यतः नय के दो भेद माने जाते हैं - निश्चय नय और व्यवहार नय । निश्चय नय शुद्ध न कहलाता है क्योंकि वह एकांततः आत्मा के शुद्धस्वरुप के साथ संबद्ध है । आत्मा ही परम सत्य या शुद्ध तत्व है। आचार्य कुंदकुंद ने समयसार में शुद्धनय के अनुसार आत्मा का जो वर्णन किया है, वह उसे शुद्धोपयोग की भूमिका में ले जाता है । उन्होने लिखा है : “जो जीव चारित्र, दर्शन और ज्ञान में स्थित है, निश्चय - दृष्टि से उसे स्व-समय- आत्मस्वरुपमय है, ऐसा समझे ।" जो जीव पुद्गल कर्मों के प्रदेशों में स्थित हैं उसे पर समय जानो । स्व- समय का अर्थ आत्मा का शुद्ध स्वरुप है । पर समय का अर्थ उसकी विभावावस्था है। दर्शन, ज्ञान एवं चरित्र जीव का स्वभाव है। कर्म - पुद्गलों से बद्ध अवस्था पर भाव है । जब तक आत्मा पर - भाव में विद्यमान रहती है, तक तक वह संसारावस्था में, सुख-दुःख में अवस्थित होती है । - निश्चयनयानुरुप सिद्धान्त के अनुसार आत्मालोक में सुंदर या उत्तम हैं । वहाँ दूसरे के साथ बंधन का प्रसंग नहीं बनता अर्थात् शुद्ध स्वरुप स्थित आत्मा के साथ कर्मों का बंध नहीं होता । २४६ (२५१)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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