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एसो पंच नमो नमोकारो यह पुण्यतत्व हैं। सव्व पाव पणासणो यह पापतत्व हैं । मंगलाणंच सव्वेसिं ये अजीव मिश्र क्षयोपशम भाव से जीव तत्व है। पढमं हवई मंगलम् यह शुद्ध जीव तत्वकी पहचान कराता है । २३५
इस प्रकार नवकार मंत्र में पुण्यतत्व का समावेश हुआ है।
एक वस्तुमें दो मूल धर्म है।- १) द्रव्य और २) पर्याय इस दृष्टिसे नय द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दो प्रकारके हैं। इन मूल दो नयों के अंतर्गत विस्तृत भेद सात बताया गया है और दूसरी दृष्टि से भेद की संख्या के बारेमें निश्चित रुप से कुछ बताना आसान नहीं है। दार्शनिकोने नय की संख्या या भेद के बारे में इतनी सूक्ष्म आलोचना की है कि समग्र जैन दर्शन इस चर्चा से विश्व दर्शन में विशिष्ट स्थान प्रदान कर सका है। इसलिए ऐसा भी कहा गया है कि- जितने जानने के या कथन करने के प्रकार है वे सभी नयवाद केअंतर्गत आते हैं। ___ तत्वार्थाधिगम भाष्यमें नय की परिभाषा के बारे में लिखा है कि - जीवादि पदार्थों कों जो लाते हैं, प्राप्त कराते हैं, बनाते हैं अवभाष कराते हैं, उपलब्ध कराते हैं, प्रगट कराते हैं वे नय हैं। २३६
दो विरुद्ध धर्मवाले तत्वमें किसी एक धर्म का वाचक नय है।२३७
नय के प्रकार :
नय के मुख्य सात प्रकार निम्नलिखित हैं। १) नैगम २) संग्रह ३) व्यवहार ४) ऋजुसूत्र ५) शब्द नय ६) समभिरुढ़ ७) एवंभूत २३८
वस्तुद्रव्य, पर्याय धर्म युक्त है। वस्तु के त्रिकालवर्ती पर्याय अनंत होते हैं। एक समय में भी वस्तु अनेक पर्याय युक्त रहती है। इस प्रकार एक वस्तु के अपने द्वारा या अन्य द्वारा किये गये संबंधकृत, शब्दकृत तथा अर्थकृत पर्यायोंसे उसकी एक ही साथ अनेक धर्मात्मकता सिद्ध होती है और ऐसी अनेक धर्मात्मक वस्तुओं का किसी एक धर्म की अपेक्षासे कथन करना वचनात्मक नय हैं । उसको जानना ज्ञानात्मक नय हैं ।२३९
द्रव्यार्थिक नय सामान्य को विशेष रुप में ग्रहण करता है और पर्यायार्थिक नय विशेष को सामान्य रुप में ग्रहण करता है। इसी कारण नयज्ञान के ये दो भेद हैं। पहले तीन या चार भेद द्रव्यार्थिक नय के हैं और अंतिम तीन या चार भेद पर्यायार्थिक नय के हैं। नय के सात भेद का संक्षेप में विवरण निम्नलिखित है १) नैगम नय : संकल्पमात्र को विषयरुपमें जो ग्रहण करता है वह नैगमनय कहा जाता
है। निगम शब्द का अर्थ संकल्प भी है। इसलिए संकल्प को विषय रुप में स्वीकार
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