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नयवाद से नवकार की सिद्धि
नवकार मंत्र की भिन्न-भिन्न दृष्टि से ज्ञानियोंने आलोचना की है। इसका प्रधान उद्देश्य नवकार मंत्र की महिमा को व्यक्त करने का है। नवकार मंत्र जैन धर्म का ही नहीं सारे विश्व धर्म का उत्तम मंत्र बनने की सामर्थ्य रखता है। नवकार मंत्र के प्रत्येक वर्ण में आत्मा को गुण समृद्ध करने की - आत्मामें आवरण रुप से ढँके हुए गुण को प्रकाशित करने की उत्तम शक्ति छिपी है। किसी भी अवस्थामें नवकार मंत्र का स्मरण मात्र साधक को परमशांति देनेवाला
है । इसलिए नवकार मंत्र के बारे में जितना भी लिखा जाए उतना ही कम है। जैन परिभाषा
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के भिन्न भिन्न आलोचकों ने अलग - अलग दृष्टि बिंदुओंसे नवकार मंत्र का रहस्य समझाने महत्त्व दिखाने की सराहनीय प्रवृत्ति की है ।
नवकार मंत्र की नवतत्व के संदर्भ में समीक्षा हमने पूर्ण की है और अब नय की दृष्टि से नवकार मंत्र की महत्ता दर्शानेका मेरा नम्र प्रयास है। जैन दार्शनिकोंने दर्शाया है कि - अनंत धर्मात्मक होने के कारण वस्तु बड़ी जटील है । उसको जाना जा सकता है पर कहा नहीं जा । उसे कहने के लिए वस्तु का विश्लेषण करके एक - एक धर्म द्वारा क्रमपूर्वक उसका निरुपण करने के अतिरिक्त अन्य उपाय नहीं है। कौनसे धर्म को पहले और किसको बादमें कहा जाए यह भी कोई नियम नहीं है। यथा अवसर ज्ञानी वक्ता स्वयं किसी एक धर्म को मुख्य करके उसका कथन करता है । उस समय उसकी दृष्टि में अन्य धर्म गौण होते है पर निषिद्ध नहीं और अंतमें वस्तु के यथार्थ, अखंड, व्यापक रूप को समझने की सफलता प्राप्त होती है । २३२
नय की परिभाषा :
श्रोता को वस्तु के निकट ले जाने के कारण 'नयतिती नय' अर्थात् श्रोता या वाचक को पदार्थ की ज्ञान प्राप्ति के लिए, पदार्थ के निकट ले जाने को नय कहते है । अथवा वक्ता अभिप्राय को या वस्तुके एकांश ग्राही ज्ञान को नय कहते है । २३३
अनेक धर्मात्मक वस्तुका उसके अन्यान्य धर्मों का निषेध किये बिना, उसके किसी एक धर्म की अपेक्षा से ज्ञान करना या कथन करना नय है और इस तरह कथन करनेवाले ज्ञान को नयज्ञान या नयवाद कहा जाता है।'
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समीक्षा
नवकार मंत्र में नवतत्त्व इस प्रकार घटाये जाते हैं - अरिहंत और सिद्ध ये मोक्षतत्व सूचक है। आचार्य उपाध्याय और साधु ये संवर और निर्जरा तत्व सूचक है। आश्रव निरोध यह संवर है । बंध का प्रतिपक्षी निर्जरा है ।
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